द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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अब्राहम ने “न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की। और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है” (रोमियों 4:20,21)

जब हम असंभव परिस्थितियों में परमेश्वर में अपना भरोसा बनाए रखते हैं, तब हम परमेश्वर की बड़ी महिमा करते हैं। हम जानते हैं कि ऐसी कोई समस्या नहीं है जिससे परमेश्वर निपट नहीं सकता। वह शैतान द्वारा कहीं भी तैयार की जाने वाली हर एक समस्या को हल कर सकता है। राजा का मन भी उसके हाथ में रहता है, हैं और वह उसे भी हमारे पक्ष में कर सकता है (नितिवचन 21:1)

इसलिए चाहे जो भी होता रहे हमें हमेशा परमेश्वर में अपना भरोसा बनाए रखना चाहिए और अपने इस विश्वास का अंगीकार करते रहे कि वह शैतान को आपके पाँवों तले कुचलवा देगा। तब शैतान चाहे कुछ भी करे, आप उस पर जय पाते रहेंगे। मैंने अपने जीवन में यह बार-बार होते देखा है।

क्योंकि पृथ्वी पर हमें परमेश्वर एक आत्मिक शिक्षा देना चाहता है, इस लिए आपको ऐसी अपेक्षा रखनी चाहिए कि समय गुज़रने के साथ-साथ आपकी मुश्किलें और ज़्यादा बढ़ती जाएंगी – वैसे ही जैसे बड़ी कक्षाओं में आगे बढ़ते हुए आपके स्कूल के गणित के प्रश्न ज़्यादा मुश्किल होते जाते है! लेकिन यक़ीनन आप गणित के किसी मुश्किल सवाल की चुनौती का सामना करने से बचने के लिए एक छोटी कक्षा में लौटना न चाहेंगे! इसलिए हमें तब भी कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए जब हम अनुग्रह में बढ़ते है और जब परमेश्वर हमें ज़्यादा मुश्किल हालातों का सामना करने की अनुमति दे। इस तरह हम ज़्यादा शक्तिशाली, साहसी और दृढ़ मसीही बनेंगे।

हर समय इस बात का ध्यान रखें कि हमारा विवेक हमको कभी किसी बात के लिए दोषी न ठहराने पाए। तभी हम साहस के साथ परमेश्वर के सम्मुख आ सकेंगे और उससे अपनी मुश्किलें हल करने के लिए कह सकेंगे (1 यूहन्ना 3:21,22)। परीक्षाओं में परमेश्वर से बुद्धि माँगना (देखें याकूब 1:1-7), यह परमेश्वर से ऐसी किसी भी मुश्किल का हल माँगना है जिसका हम सामना कर रहे हैं। परमेश्वर के पास क्योंकि हर मुश्किल का हल है, इसलिए याकूब कहता है जब आपका सामना विभिन्न समस्याओं से हो, तो इसे बड़े आनंद की बात समझना – क्योंकि जब परमेश्वर आपकी समस्या को हल करेगा, तो उसमें आपको परमेश्वर का एक नया अनुभव होगा।

केवल दो बार ही हम पढ़ते है कि "यीशु आश्चर्यचकित हुआ" (केजेवी अनुवाद) - एक बार जब उसने विश्वास देखा और दूसरा जब उसने अविश्वास को देखा। जब रोमी सूबेदार ने कहा कि यीशु एक शब्द बोले और उसका दास (जो कई मील दूर था) ठीक हो जाएगा, तो यीशु ने उसके विश्वास पर अचम्भा किया (मत्ती 8: 10)। फिर जब यीशु अपने स्वयं के नगर में आया, और उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया, तब यीशु ने उनके अविश्वास पर आश्चर्य किया (मरकुस 6: 6)। सूबेदार इतना विनम्र था कि उसने प्रभु से कहा कि वह स्वयं को इस योग्य नहीं समझता कि यीशु उसके घर में भी प्रवेश करे।

एक कनानी स्त्री जिसने प्रभु से अपनी बेटी (जो कई मील दूर थी) को चंगा करने के लिए कहा था, और यहाँ एक और बार यीशु इस स्त्री को उसके विश्वास के लिए बहुत सराहता है (मत्ती 15: 28)। जब यीशु ने कुत्तों के उदाहरण का उपयोग बच्चों को रोटी नहीं दिए जाने के लिए किया था, तो उसने झट से मेज के कदमों पर एक कुत्ते की समान पूर्ण विनम्रता के साथ अपनी जगह स्वीकार कर ली। उसे बुरा नहीं लगा। इन दोनों घटनाओं में, हम यहाँ एक बात को एक समान देखते हैं: कि नम्रता और विश्वास के बीच बहुत करीबी संबंध है। हम जितने नम्र होंगे, उतना ही कम हमें अपने आप पर भरोसा होगा, और जितना कम हम अपनी प्रतिभा और उपलब्धियों के बारे में सोचेंगे, उतना ही अधिक हममें विश्वास होगा। हम जितने घमंडी होंगे, उतना ही कम हममें विश्वास होगा। हमें हमेशा यह महसूस करना चाहिए कि हम प्रभु के सामने खड़े होने के योग्य नहीं हैं। यह परमेश्वर का असीम अनुग्रह है कि वह हमें ऐसा करने की अनुमति देता है। हमें कभी भी इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसलिए नम्रता को अपने पूरे हृदय से खोजे।