द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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1. संगति
श्रेष्ठगीत 2:4 (टी.एल.बी. अनुवाद) में दुल्हन कहती है, “वह मुझे भोज-गृह में ले आया है, ताकि सब यह देखें कि वह मुझसे कितना प्रेम करता है"। उड़ाऊ पुत्र का पिता अपने पुत्र को भोजन की मेज़ पर लाया। यीशु अपने शिष्यों के साथ भोजन की मेज पर बैठा। मेज़ संगति के विषय में बताती है। मेज़ पर, हम प्रभु के लिए अपनी सेवकाई में व्यस्त नहीं होते, बल्कि प्रभु के साथ संगति करते हैं। हम उसके साथ भोजन करते हैं। (प्रकाशितवाक्य 3:20)। सेवकाई कभी भी हमारे जीवन का प्राथमिक केंद्र नहीं होना चाहिए। परमेश्वर के प्रति प्रेम ही हमेशा प्राथमिक होना चाहिए। 50 वर्षों से अधिक परमेश्वर की पुर्णकालिन सेवा करने के बाद, मैं यह कहना चाहता हूँ, कि परमेश्वर के प्रति मेरी भक्ति ही मेरी संपूर्ण सेवकाई का आधार रही है। परमेश्वर की दृष्टि में हमारी सेवकाई का कोई मूल्य नहीं रहेगा, यदि मसीह के प्रति हमारी भक्ति (समर्पण) घटती रहेंगी। मसीह के साथ हमारा व्यक्तिगत, प्रेमपूर्ण और भक्तिमय (समर्पित) सम्बन्ध ही वह सोता है, जिसमें से परमेश्वर के लिए समस्त सच्ची सेवाएँ बहती हैं।

2. सराहना:
“हे मेरी प्रिय तू सुन्दर है” कहकर दूल्हा दुल्हन की सराहना कर रहा है (श्रेष्ठगीत 4:1)। हमें परमेश्वर से ऐसे ही वचनों को सुनने की आवश्यकता हैं - जो हमें आश्वस्त करता है कि परमेश्वर वास्तविकता में हम पर आनंद मनाता है। पति-पत्नियों को भी एक दूसरे से ऐसे ही सराहना के कथनों को सुनने की आवश्यकता होती हैं। श्रेष्ठगीत अध्याय 4 में हम पढ़ते है, कि दूल्हा दुल्हन की लम्बी सराहना कर रहा है। आत्मिक उन्नति का एक चिन्ह यह होता है, कि हम स्वयं ज्यादा बात करने की बजाय प्रभु की बात ज्यादा सुनने लगते हैं। और जब दुल्हन सुनने लगती है, तब वह उसके दूल्हे को उसकी सराहना करते हुए पाती है। वह उसके हरेक अंग की सरहना करता है, और अपनी बात यह कहते हुए पूरी करता है, “हे मेरी प्राणप्रिय, तू सर्वांग सुन्दरी है" (श्रेष्ठगीत4:7)। दूल्हा आगे दुल्हन के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त करता है (श्रेष्ठगीत 6:4-10)। वह कहता है कि सभी स्त्रियों में उसकी प्रियतमा जैसी दूसरी कोई नहीं है। वह तो निष्कलंक है। मैं उसे सब स्त्रियों के ऊपर चुनता हूँ। हरेक पति को अपनी पत्नी को इस तरह ही देखना चाहिए : इस संसार में बहुत सी आकर्षक स्त्रियाँ हैं, लेकिन मेरी पत्नी जैसी कोई नहीं है। वह मेरी नजर में अद्वितीय है। प्रभु हमारे विषय में यही कहता है। वह संसार के सारे चतुर, धनवान, और महान लोगों से ज्यादा हमारी सराहना करता है। श्रेष्ठगीत 7:1-9 में हम पढ़ते हैं, कि दूल्हा कैसे दुल्हन की सराहना (प्रशंसा) करता है। हमें यह स्पष्ट रूप से देख लेने की जरूरत है कि हमारी सारी कमजोरियों के बावजूद, हमारा प्रभु हमारी सराहना करता है, हमारी प्रशंसा करता है। बहुत से विश्वासी निरंतर एक आत्म-दोष की भावना में जीते हैं, जिसकी वजह सिर्फ यही है कि वे यह विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर उनकी सराहना करता है।

3. मित्रता:
श्रेष्ठगीत 5:16 में, दुल्हन दूल्हे की सराहना करती है, "वही मेरा प्रियतम और वही मेरा मित्र है"। क्या आप यह कह सकते हैं कि यीशु सिर्फ आपका उद्धारकर्ता ही नहीं आपका मित्र भी है? पृथ्वी पर आपके पति/पत्नी के विषय में क्या कहेंगे? क्या वह भी इस जगत में आपके सबसे अच्छे मित्र हैं? ऐसा होना चाहिए। बहुत से पति व पत्नी यह कहते हैं कि वे एक-दूसरे से प्रेम करते हैं लेकिन वे एक-दूसरे के सबसे अच्छे मित्र नहीं हैं। उनके सबसे अच्छे मित्र दूसरों (बाहरी लोगों) के मध्य में पाए जाते हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। यीशु मेरा सबसे नजदीक और सबसे प्यारा मित्र है - वह मेरी पत्नी से भी ज्यादा मेरे नज़दीक है। लेकिन पृथ्वी पर, मेरी पत्नी मेरी सबसे अच्छी और सबसे नज़दीकी मित्र है - और वह जीवन-भर रहेगी। इसने मेरे मसीही जीवन और वैवाहिक जीवन को अत्यधिक ख़ुशहाल बना दिया है।