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हम लूका 22:31 में यीशु को पतरस को आने वाले ख़तरे के विषय में चेतावनी देते हुए पढ़ते हैं। यीशु ने उससे कहा, “शमौन, हे शमौन! देख शैतान ने तुझे माँगा है कि गेहूँ की तरह फटके, परन्तु मैंने तेरे लिए विनती की है कि तेरा विश्वास जाता न रहे; और जब तू फिरे तो अपने भाइयों को स्थिर करना।"

यही एक उद्देश्य था कि परमेश्वर ने पतरस को असफल होने की अनुमति दी। वह उद्देश्य पतरस को फटकने के लिए था। शैतान वास्तव में जो चाहता था, वह यह था कि परतस को पूर्ण रूप से नाश कर डाले, परंतु परमेश्वर ने उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। परमेश्वर हमें भी हमारी क्षमता से परे परीक्षा में पड़ने की अनुमति नहीं देता। अतः शैतान को पतरस को फटकने की अनुमति दी गई थी। पतरस की असफलता के परिणाम स्वरूप वह पूर्ण रूप से अपने जीवन के भूसे के गट्ठर से अलग करके शुद्ध कर दिया गया। यही वास्तविक उद्देश्य है जिसके साथ परमेश्वर हमें असफल होने की अनुमति देता हैं। क्या भूसे का हमारे जीवन से अलग हो जाना अच्छी बात नहीं है? निःसन्देह! जब किसान गेहूँ की कटनी करता है, तो उसे इस्तेमाल करने से पूर्व वह गेहूँ को फटकता है, और तब ही भूसा उस गेहूँ से अलग हो पाता है।

परमेश्वर हमारे जीवन से भूसे को हटाने के लिए शैतान का प्रयोग करता हैं। काफी अचरज की बात है, परमेश्वर इस उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु हमें बार-बार असफल होने देता है। इसी प्रकार परमेश्वर ने पतरस में इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए शैतान का उपयोग किया, और वह हमारे जीवन में भी इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए शैतान का उपयोग करेगा। हम सभी में बहुत भूसा भरा हुआ है। घमंड का, आत्म-विश्वास का तथा स्व-धार्मिकता का भूसा। परमेश्वर हमें बार-बार असफल करने के लिए शैतान का प्रयोग करता है ताकि पूर्ण रूप से भूसा हमसे बिल्कुल अलग हो जाए।

केवल आप ही हैं जो जानते हैं कि क्या प्रभु इस उद्देश्य को आपके जीवन में पूरा करने में सफल हो रहा हैं या नहीं। परन्तु यदि भूसा अलग किया जा रहा है, तो आप अधिक नम्र और कम स्व-धर्मी होंगे। आप असफल होने वालों को नीचा नहीं जानेंगे। आप स्वयं को किसी से भी बेहतर नहीं समझेंगे।

परमेश्वर हमारी निरन्तर असफलता के द्वारा भूसे को हमसे अलग करने के लिए शैतान का उपयोग करता हैं। तो हिम्मत न हारिये यदि आप असफल होते है। आप अब भी परमेश्वर के हाथ में हैं। एक महिमामय उद्देश्य है जो आपकी निरन्तर असफलता के द्वारा पूरा हो रहा है। किन्तु ऐसे अवसरों में परमेश्वर के प्रेम में आपका विश्वास असफल नहीं होना चाहिए। यही प्रार्थना यीशु ने पतरस के लिए की और वही प्रार्थना वह हमारे लिए आज कर रहा है। वह यह प्रार्थना नहीं कर रहा है कि हम कभी असफल न हों, किन्तु वह प्रार्थना कर रहा है कि जब हम गिर कर धाराशायी भी हो जाएं तब भी परमेश्वर के प्रेम में हमारा विश्वास स्थिर रहे।

असफलताओं के बहुत से अनुभवों के द्वारा हम अन्ततः एक "शून्य बिन्दु” पर पहुँचते हैं, जहाँ हम वास्तव में टूट जाते हैं। यही था जब पतरस उस बिन्दु पर पहुँचा जहाँ उसमें दूसरा "बदलाव" आया (लूका 22:32) । वह फिरा। यह सबूत है कि पतरस के लिए यीशु की प्रार्थना का जवाब दिया गया था इस तथ्य के द्वारा कि जब पतरस बिलकुल नीचे गिर कर धाराशायी हो गया, तब वह फिरा। वह हिम्मत छोड़कर वहीं पर बना नहीं रहा। उसने अपने विश्वास को नहीं छोड़ा। वह उठ खड़ा हुआ। परमेश्वर ने उसे लम्बे पट्टे तक जाने दिया था। परन्तु जब पतरस उस रस्सी के सिरे तक पहुंचा, परमेश्वर ने उसे वापिस खींच लिया।

परमेश्वर की सन्तान होना एक अद्भुत बात है। जब परमेश्वर हमें थाम लेता है, वह हमारी सुरक्षा के लिए हमारे चारों ओर रस्सी बाँध देता है। उस रस्सी में बहुत ही ढीले स्थान हैं, कि आप फिसल सकते हैं और हज़ारों बार गिर भी सकते हैं, और यहाँ तक कि प्रभु से दूर भटक भी सकते हैं। परन्तु एक दिन, आप उस रस्सी के सिरे तक पहुँच जाएंगे, और तब परमेश्वर आपको वापिस अपनी ओर खींच लेगा। निःसन्देह, उस बिन्दु पर पहुँच कर आप रस्सी को काट कर भाग जाने का निर्णय कर सकते हैं। या आप परमेश्वर की दया के द्वारा टूटना चुन लें और विलाप करें और उसके पास लौट आए। यही तो परतस ने किया। वह रोया और प्रभु की ओर लौट आया। परन्तु यहूदा इस्करियोती ने ऐसा नहीं किया। उसने रस्सी को काट डाला, अपने जीवन से परमेश्वर के अधिकार का विद्रोही बन गया और अनंतकाल के लिए खो गया। किन्तु मैं भरोसा करता हूँ कि आप वही करेंगे जो पतरस ने किया।

यीशु ने तब पतरस से कहा, "जब तू फिरे और पुनः स्थिर हो, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।" जब हम टूट जाते है तभी हम दूसरों को बलवंत करने के लिए पर्याप्त मज़बूत/बलवंत हो सकते है। ऐसा केवल तब ही था जब पतरस निर्बल और टूटा हुआ था, कि वह उसके द्वारा वास्तव में बलवन्त हुआ, इतना बलवन्त हुआ कि अपने भाई-बहनों को स्थिर करने योग्य बना। हम कह सकते हैं पतरस की आत्मा से भरपूर सेवकाई की तैयारी उसके असफलता के अनुभव से आई। अगर वह बिना असफलता के अनुभव से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होता, तो वह पिन्तेकुस्त के दिन एक घमंडी व्यक्ति की भांति खड़ा हुआ होता, एक ऐसे व्यक्ति की तरह जिसने कभी भी असफलता का सामना न किया हो, जो बेचारे एवं खोए हुए पापियों पर जो उसके सामने हैं, निम्नता और तिरस्कार की दृष्टि डालता हो। और परमेश्वर उसका शत्रु बन गया होता क्योंकि परमेश्वर घमंडी का विरोधी है!!

इससे पहले कि पतरस वह बन सकता जो परमेश्वर उसे बनाना चाहता था, पतरस को शून्य-बिंदु पर आना पड़ा। एक बार जब हम स्वयं गिरकर धाराशायी हो चुके हो तो हम दूसरों का तिरस्कार कभी नहीं कर सकते जो अभी इस स्थान पर हैं। उसके पश्चात हम पापियों को और पीछे हटे विश्वासियों को, यहाँ तक कि गिर जाने वाले अगुवों को भी तुच्छ नहीं जानेगे। हम कभी भी अपने पापों पर विजय प्राप्त करने पर घमण्ड नहीं कर सकते नहीं क्योंकि हम जानते हैं कि असफलता क्या होती है क्योंकि एक समय स्वयं हम भी उस स्थान पर रह चुके हैं। इसीलिए पतरस स्वयं दूसरे मसीहियों को यह कहते हुए सचेत करता है, “अपने पिछले पापों के धोये जाने को न भूलो" (2 पतरस 1:9 ) । वह उनको सचेत करता है कि यदि वे भूल जाते हैं तो वे अन्धे और धुंधले देखने वाले बन जाएंगे। मैं कभी भी अंधा और धुंधला देखने वाला नहीं बनना चाहता। मैं हर समय स्वर्गीय और अनंत मूल्यों को देखनेवाली दूर दृष्टि चाहता हूँ।