द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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इफिसियों 4:13 में, प्रेरित पौलुस कहता है कि हमें धीरे धीरे “एक परिपक्व मनुष्य बनना है और मसीह के पूरे डील -डौल तक बढ़ना है”। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम स्वयं बढ़ें और दूसरों की भी मदद करे कि वे इस परिपूर्णता तक पहुँच सकें। हम “ऐसे बच्चे न बने रहें जो मनुष्यों की ठग-विद्या, धूर्तता, भ्रम की युक्ति, और सिद्धान्त रूपी हवा के हरेक झोंके के साथ उछाले और इधर-उधर घुमाए जाते हो” (इफिसियों 4:14)

परमेश्वर हमारा धोखे और झूठी शिक्षाओं से आमना-सामना होने देता है जिससे कि हममें परखने की क्षमता बढ़े। हमारी परखने की क्षमता किसी दूसरे तरीके से नहीं बढ़ सकती। इस वजह से ही वह मसीह जगत में इतने सारे धोखेबाजों और झूठे शिक्षको को घूमने-फिरने देता है। इस तरह हम उन लोगों की परख कर सकेंगे जिनकी आत्मा सहीं है और जिनकी आत्मा सहीं नहीं है। हमें दूसरों का न्याय नहीं करना है। लेकिन हमें परखना है। इस प्रकार हमारी आत्मिक अनुभूतियाँ विकसित होंगी।

इफिसियों 4:15 में हमें “सब बातों में बढ़ने के लिए प्रेम में सच बोलने” के लिए उत्साहित किया गया है। यह ध्यान दे कि सत्य और प्रेम में एक संतुलन होता है। क्या हमें सच बोलना चाहिए? हाँ हमेशा। लेकिन क्या हमें यह अनुमति है कि हम उसे जैसा चाहे वैसा बोल सके? नहीं। हमें सत्य को हमेशा प्रेम में बोलना है। अगर आप सत्य को प्रेम में नहीं बोल सकते, तो तब तक इंतजार करे जब तक आप में लोगों से सत्य बोलने के लिए पर्याप्त प्रेम न आ जाएँ। प्रेम वह तख्ती है जिस पर आप सत्य की कलम से लिख सकते है। अगर आप तख्ती के बिना ही सत्य लिखने की कोशिश करेंगे तो आप हवा में लिखने वाले होंगे। कोई यह नहीं समझ पाएगा कि आप क्या लिख रहें हैं। हमेशा प्रेम में सत्य बोलने द्वारा ही – चाहे पुलपिट से या निजी बातचीत में – ऐसा होगा कि हम “सब बातों में उसमें जो सिर है, अर्थात मसीह में बढ़ते जाएंगे”

इफिसियों 4: 16 में, वह “संपूर्ण देह के प्रत्येक जोड़ में एक साथ बंध कर सुगठित होने, व प्रत्येक अंग के ठीक-ठीक काम करने द्वारा बढ्ने और इस प्रकार प्रेम में स्वयं उन्नत होने” की बात करता है। यहाँ जोड़ संगति को दर्शाता है। जरा सोचिए कि सिर्फ आपकी बांह (भुजा) में ही कितने जोड़ है। एक जोड़ कंधे में है, एक कोहनी में है, एक कलाई में है, फिर हर एक उंगली में तीन तीन जोड़ है – इस प्रकार कम से कम 17 जोड़ है। आपकी बांह के जोड़ों की वजह से ही आप की भुजा पूरी आज़ादी से काम कर पाती है। अगर आपकी बांह का ऊपरी हिस्सा शक्तिशाली होता और निचला हिस्सा भी शक्तिशाली होता, लेकिन अगर आपकी कोहनी अकड़ी हुई होती तो आप अपनी बांह से क्या कर पाते? कुछ भी नहीं। आपकी बांह सिर्फ शक्ति से ही काम करने वाली नहीं बन जाती। वह सक्रिय जोड़ों से भी काम करने वाली बनती है। अब इस बात को मसीह की देह पर लागू करके देखे। एक अच्छा भाई है – एक मजबूत ऊपरी बांह। और एक ओर अच्छा भाई है – एक मजबूत निचली बांह। लेकिन वह एक दूसरे के साथ संगति नहीं कर पाते। आज मसीह की देह की ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण दशा है। मानवीय देह में इसे गठिया (अर्थराइटिस) का रोग कहते है और यह बहुत पीड़ादायक होता है। बहुत सी स्थानीय कलीसियाओ को गठिया का रोग हो गया है। जब हमारे जोड़ सही तरह काम कर रहे होते है, तो कोई आवाज/शोर नहीं होता। लेकिन जब एक देह में गठिया हो जाता है, तो वह चरमराने लगती है और उसके हिलने-डुलने से भी कई तरह का अस्वास्थ्यकारक शोर निकलता है। कुछ विश्वासियों के बीच "संगति" जिसे कहा जाता है, वह वास्तव में ठीक उस शोर की तरह ही है। वह चरमराती है। लेकिन जब सारे जोड़ सही तरह काम करते है, तो उनमे से कोई शोर नहीं निकलता। हमारी एक दूसरे के साथ संगति ऐसी ही होनी चाहिए। अगर आपकी ऐसी संगति नहीं है तो आपको गठिया रोग के लिए कोई दवा लेनी पड़ेगी: अपनी “खुदी के जीवन” के लिए मर जाएँ। तब आप चंगे हो जाएंगे और दूसरों के साथ आपकी संगति भी महिमामय होगी। मसीह की देह में परमेश्वर की यही इच्छा है।