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होशे इस्राएल के उत्तरी राज्य में नबूवत करता था। उसके नबूवत का विषय धार्मिक व्यभिचार और परमेश्वर का अपरिवर्तनीय प्रेम था। उसकी नबुवते यह दर्शाते थे कि परमेश्वर का व्यवहार उनके लोगो के प्रति ऐसा था जैसे एक पति अपनी अविश्वसनीय पत्नी से लगातार प्रेम करता रहता है।

पुराने नियम में इस्राएल को "यहोवा की दुल्हन" कहा गया है। परमेश्वर और इस्राएल के बीच के रिश्ते को एक रिश्ते के रूप में माना गया था - उसी तरीके से जैसे आज हमारा और यीशु मसीह का है। यदि एक पत्नी अपने पति के अलावा किसी और से प्रेम करती है, या किसी और को खुश करना चाहती है तो वह अविश्वसनीय है और उसे व्यभिचारिणी कहना उचित है। यह ठीक उसी प्रकार परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते के समान है। यदि प्रभु के साथ हमारा विवाह हो गया है और फिर भी हम पैसो से प्रेम करते है, तब हम धार्मिक व्यभिचारिणिया हैं, क्योंकि पैसा यह 'दूसरा पुरुष' है। यदि हम संसार के सम्मान को चाहते है, तो वह भी ऐसे होगा जैसे हमने किसी 'दुसरे पुरुष' (संसार) की और अपना ध्यान लगाया है, जो हमें अपनी और आकर्षित करता है। अगर हम पापमय खुशी से प्यार करते हैं, तो वह भी दुनिया का एक हिस्सा है। इसीलिए याकूब विश्वासियों से कहता है, 'हे व्यभिचारिणियों क्या तुम नहीं जानती कि संसार से मित्रता करना परमेश्वर से शत्रुता करनी है? (याकूब 4:4)

होशे इसी मुख्य विषय की ओर संकेत करता है। और परमेश्वर ने उसे यह पाठ बहुत ही दर्दनाक तरीके से सिखाया। पुराने नियम के दुसरे नबियों के अतिरिक्त होशे में परमेश्वर ने यह कोशिश की है कि उनका सेवक उनके ह्रदय को महसूस करे। और नए नियम में सच्चे नबियों की सेवकाई का भी यही नियम है। जैसे परमेश्वर अपने लोगों के प्रति महसूस करता है, हमें भी उसी तरह से परमेश्वर के लोगों के प्रति महसूस करना चाहिए। जैसा परमेश्वर अपने लोगों को देखता है, हमें भी उन्हें उसी तरह से देखना चाहिए। नहीं तो, हम केवल सच्चाई को प्रचार करने वाले प्रचारक ही रहेंगे, परन्तु हम में वह भावना नहीं होगी जो परमेश्वर अपने लोगों के प्रति रखता है। और इसीलिए परमेश्वर हमें कई दर्दनाक परीक्षाओ से ले जाता है, ताकि हम भी वही भावना को महसूस करें, जो वह अपने लोगों के प्रति रखता है, इससे पहले कि हम एक प्रभावी रूप से सेवकाई कर सके।

उदाहरण के लिए, होशे के समय में इस्राएल एक अविश्वसनीय पत्नी के समान थी। जब वह मूर्तियों की उपासना करती थी, तब वह परमेश्वर की ओर अविश्वसनीय थी। यह व्यभिचार के रूप में चित्रित किया गया था। पुराने नियम में व्यभिचार और मूर्तिपूजा के बीच एक निकट संबंध बताया गया है। नए नियम में भी धार्मिक व्यभिचार मूर्तिपूजा का एक रूप है। मूर्तिपूजा का मतलब है सच्चे परमेश्वर को छोड़ किसी और वास्तु की आराधना करना। और यह आपका कारोबार, या संपत्ति, पैसा या सुन्दर चेहरा हो सकता है। और यह आपकी सेवकाई भी हो सकती है। वह सबकुछ जो मसीह के अलावा आपके जीवन में पहला स्थान ले लेता है, वह मूर्ति है। और जब किसी और बात ने आपके जीवन में परमेश्वर के स्थान को ले लिया है, तब आप एक मूर्तिपूजक बन चुके है, एक धार्मिक व्यभिचारिणी। और उस समय हर एक बात जो एक व्यभिचारिणी और मूर्तिपूजक को कहा जाता है, वह आपके लिए भी लागु हो जाता है।

एक अविश्वसनीय पत्नी से होशे का ब्याह कराकर, परमेश्वर ने उसे अपने दिल को महसूस करवाया। और होशे के लिए, सच्चाई को जानने का यह बहुत ही दर्दनाक तरीका था। ऐसा कौन सा पुरुष तैयार होगा एक ऐसी स्त्री से ब्याह करने के लिए, जिसके विषय में पहले से वह जनता है कि वह आगे जाकर अविश्वसनीय होगी और दुसरे पुरुषों के साथ व्यभिचार करेगी? इन नबियो को (नबी बनने के लिए) बहुत बड़ा कीमत चुकाना पड़ा। जब होशे की पत्नी उसके तरफ अविश्वसनीय थी, उसे यह बताया गया कि वह उससे फिर भी प्रेम करता रहे। एक समय वह अपने आपको दुसरे पुरुष के सामने एक दासी के रूप में बेच देती है। और तब होशे पैसे देकर उसे फिर से खरीद लाता है। और तब भी वह उस से प्रेम करता रहा। वापस खरीद लाने के बावजूद, वह फिर से व्यभिचार करने लगती है। होशे के लिए उसे सहन करना बहुत ही कठिन हुआ होगा। और जब होशे इस संघर्ष से गुजर रहा था, परमेश्वर ने उस से कहा, "अब तुम जान गए होगे कि मैं अपने लोगों से किस तरह प्रेम करता हूँ। अब तुम जाकर उनको प्रचार करो" । परिणामस्वरूप जब होशे ने परमेश्वर के लोगों से कठोर शब्द में बात की, परन्तु फिर भी उसके पवित्रता के संदेश में दया भी छलकती थी। उसने किस बात पर अधिक जोर दिया?

पवित्रता और परमेश्वर का अपरिवर्तनीय प्रेम। यही दो विषय सभी नबियों का बोझ था: परमेश्वर के लोगों में पवित्रता और परमेश्वर के उनके लोगों के प्रति अपरिवर्तनीय प्रेम तब भी जब वे धार्मिक व्यभिचार में पड़े हुए थे, और भटक चुके थे। हमेशा से परमेश्वर की यही इच्छा थी कि वह उनके लोगों को वापस लाए। वह उन्हें अनुशासित करता है, परन्तु वह यह भी चाहते थे की वह उन्हें फिर से अपनी ओर ला सके तब जब उनकी शिक्षा पूरी हो जाए। यिर्मयाह यह कहता है, "जब तुम्हारी शिक्षा ख़त्म हो जाएगी तब परमेश्वर तुम्हे वापस ले आएगा"। "होशे ने भी यही बात कही। परमेश्वर पवित्रता चाहता है। जब तुम में वह पवित्रता नहीं देखता, तब वह तुम्हें अनुशासित करेगा। परन्तु उसका प्रेम इतना महान है कि वह तब बड़ी कोमलता से तुम से बात करेगा और तुम्हे उसके साथ संगती में फिर से लगाएगा, यह कहकर कि 'मैं तुझे कैसे छोड़ दूँ? मैं तुझे कैसे जाने दूँ? मैं तुझे कैसे त्याग दूँ? मेरा ह्रदय मेरे भीतर रोता है। मैं तुम्हारी मदद करने में आस लगा रखा है।"(होशे 11: 8 - लिविंग)

इसी तरीके से कलीसिया में एक सच्ची नबूवत करने वाली सेवकाई भी काम करनी चाहिए। एक सच्चे नबी की भी यही बोझ होनी चाहिए जो पवित्रता के लिए परमेश्वर के लोगों के प्रति पुराने नियम के नबियों की थी। तब वह भी उन्ही के समान भावुक हो उठेगा, परमेश्वर के अपरिवर्तनीय, सहनशील, करुनामय प्रेम से जो यह इच्छा रखती है कि परमेश्वर के भटकने वाली प्रजा को उसके पास और उसके सच्चे पवित्रता के पास ला सके। हर कलीसिया में एक नबूवत करने वाली सेवकाई होनी चाहिए, यदि उस कलीसिया को परमेश्वर के लिए जिंदा और कार्यशील रखना है। और यही होशे का मूल विषय था। और इसीलिए परमेश्वर ने होशे को दुख उठाने दिया। परमेश्वर ने होशे से कहा " जाकर एक वेश्या से ब्याह कर"। उसके कुछ बच्चे तुझे दुसरे पुरुष से पैदा होंगे(होशे 1:2)। कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी एक नबी बनने के लिए। कितनों को नबी बनना है? आज परमेश्वर तुमसे वह करने को नहीं कहेगा जो उसने होशे से करने के लिए कहा था। परन्तु विधि वही है कि वह हमें बड़ी कष्टों से ले जाना चाहता है ताकि हम उसके ह्रदय को महसूस कर सके। प्रेरित पौलुस के कष्टों को पढ़ें - कई जोखिम, कई मार, कारावास में, छड़ी से पिटे जाने में, डाकुओं से लूट जाने में, अपने आप को गरम रखने लिए कपड़ों की कमी में, भूख-प्यास में (2 कुरिन्थियों 11:23-28)। यह सब कष्टों का उद्देश्य यह था कि पौलुस परमेश्वर के ह्रदय के धड़कन को सुन सके और उनके ह्रदय को महसूस कर सके जैसे स्वयं परमेश्वर महसूस करता था। जब हम कष्टों से गुजरते है, तब हम परमेश्वर के ह्रदय के निकट आ जातें है। जब हम उनके लोगों से बात करते है, तब हम उनके ह्रदय के धड़कन को सुन सकते हैं और महसूस भी कर सकतें है।