द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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2 कुरिन्थियों 9: 6 में पौलूस देने के विषय में बात करता है। वह कहता है कि अगर हम देने में कंजूसी करेंगे, तो हमारा काटना भी उसी नाप में होगा। अगर आप थोड़ा सा बीज बोएँगे, तो आप फसल भी थोड़ी सी ही काटेंगे। अगर आप ज्यादा बीज बोएँगे, तो आपको बड़ी फसल की प्राप्ति होगी। बहुत से धन-प्रेमी प्रचारको ने (खास तौर पर टीवी पर के सुसमाचार प्रचारकों ने) इस पद के द्वारा विश्वासियों को उन्हें पैसे (धन) देने के लिए प्रेरित किया है। ऐसे प्रचारक धूर्त और धोखेबाज है और वे भोले-भाले विश्वासियों को धोका दे रहें है।

जो धनी युवक यीशु के पास आया था, उससे यीशु ने क्या कहा था? उसने उससे कहा था कि वह अपना सारा धन गरीबों में बाँट दे और अपने धन के बिना उसका अनुसरण करें! यीशु ने उससे यह नहीं कहा (जैसा आजकल के ज़्यादातर प्रचारक कहते है), “जो तेरे पास है, उसे बेचकर वह धन मुझे दे क्योंकि हमारी सेवकाई में बहुत सारी आवश्यकताएँ है। मुझे अपने 12 शिष्यों और उनके परिवारों को सम्भालना है”। यीशु को वह व्यक्ति चाहिए था, उसका धन नहीं। लेकिन आज हमें प्रभु के ऐसे सेवक कहाँ मिलते है जो एक धनवान व्यक्ति से यह कह सके, “हमें तुम्हारे धन में कोई दिलचस्पी नहीं है। हमारी सिर्फ यही चाहत है कि तुम आत्मिक उन्नति करो। इसलिए तुम अपना पैसा (धन) जिसे चाहे उसे दो, लेकिन हमारी कलीसिया में आकर परमेश्वर का वचन सुनो”? और हम भी यही बात निरंतर उन आगंतुकों से कहते है जो हमारी कलीसिया में आते है।

2 कुरिन्थियों 9: 7 में हम पढ़ते है कि, “परमेश्वर हर्ष से देने वालों से प्रेम करता है”। पुरानी वाचा में, इस बात पर ज़ोर दिया जाता था कि एक व्यक्ति ने कितना दिया – दश (10) प्रतिशत और उसके साथ दूसरी भेंटे। लेकिन नई वाचा में, इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि एक व्यक्ति ने किस प्रकार दिया – हर्ष से दिया या बेमन से। अब प्रश्न देने की मात्रा का नहीं पर गुणवत्ता का है। नई वाचा में केवल गुणवत्ता पर ज़ोर दिया जाता है – यहाँ तक, कि एक व्यक्ति किस रीति से कलीसिया का निर्माण करता है।

बहुत से विश्वासी आत्मिक तौर पर गरीब है क्योंकि वे परमेश्वर को देने में कंजूसी करते है, वे अपनी मुट्ठी बांधे रहते है। परमेश्वर को देने में अपना हृदय बड़ा रखें और भरपुरी से दे – पहले अपना जीवन भरपुरी से दे, फिर अपना समय, और फिर अपनी भौतिक धन सम्पति की भरपुरी में से भी दे। आप देखेंगे कि परमेश्वर आपको सौ (100) गुणा प्रतिफल देगा।

जब मैं अविवाहित था, तो मेरे ज्यादा खर्चे नहीं थे, और मैं अपने नौसेना के वेतन में से अधिकांश परमेश्वर के काम के लिए दे देता था। फिर जब मेरा विवाह हुआ, तब मुझे पता चला कि अब मेरी बहुत सी आर्थिक जरूरते है। लेकिन मैं एक बार भी कर्ज में नहीं पड़ा। मुझे कभी भी किसी से पैसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि परमेश्वर ने हमें संभाला और जो कुछ मैंने पहले उसे दिया था, उसने वह सब मुझे लौटा दिया। इसलिए मैं आपसे अपने अनुभव से यह कह सकता हूँ।

परमेश्वर को बहुतायत से देना सीखें – और तब आप अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान पाएंगे। लेकिन मैं आपको एक चेतावनी देता हूँ कि आप बुद्धिमानी से दे। ऐसे प्रचारको को पैसे न दें जो आपसे पैसे मांगते हैं। और ऐसे प्रचारको को तो कभी न दें जो बहुत ही सुख विलासता के साथ जीवन व्यतीत करते है। वे आपके पैसे को बर्बाद कर देंगे। प्रार्थना करे और परमेश्वर की इच्छा जानने की कोशिश करे, और जहां परमेश्वर आपको सबसे बड़ी जरूरत दिखाएँ, वहीं दें। धनवानों को नहीं परंतु गरीबों को दें। जो वास्तव में जरूरतमंद हैं, उन्हें ही दें। और तब आप पाएंगे कि आपकी जरूरत के समय परमेश्वर आपको बहुतायत की कटनी देगा। यह परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं हो सकती कि उसका कोई भी बच्चा कर्ज में रहे या लगातार आर्थिक संकटों का सामना करें – जब उनके पास स्वर्ग में इतना धनवान पिता है। बहुत से विश्वासि ऐसी समस्याओं का सामना इसलिए करते है क्योंकि वे परमेश्वर के प्रति धनी नहीं है। जो हम बोते है वही हम काटते है।