द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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पिछले दिनों में कई मसीही विश्वासियों ने अपना क्रूस उठाकर और खुद का इन्कार करके पवित्रता और पाप पर विजय प्राप्त करने की कोशिश की। परंतु उन्होंने हमेशा पाया कि मसीही जीवन एक महिमामय जीवन, जैसा कि बाईबल वर्णन करती है होने के बजाए एक मुश्किल जीवन है। उनकी असफलता यह है कि उन्होंने नई वाचा के अन्तर्गत कभी विश्वास के जीवन को नहीं समझा। पुराने वाचा के सिद्धान्तों से उनहोंने पवित्र बनने की कोशिश की और जो कुछ परमेश्वर ने उनके लिए रखा था उसे वे लोग खो बैठे।

२ कुरिन्थियों ३:६ हमें बताता है कि नई वाचा आत्मा की सेवकाई है जो जीवन लाती है, परंतु पुरानी वाचा शब्द की सेवकाई थी जो मृत्यु ले आई! और यदि हम परमेश्वर की आज्ञाओं के अक्षर के अनुसार चलते हैं - नई वाचा में भी - तो वह मृत्यु ले आएगी। यदि हम विश्वास से जिएं और पवित्र आत्मा को अनुमति दें कि वह हमारी अगुवाई करें, तो हम ''मसीह के जीवन में'' प्रवेश करेंगे।

यीशु अब स्वर्ग पर चढ़ गया और उसने अपने पवित्र आत्मा को पृथ्वी पर भेज दिया, ताकि हमारे जीवन पुराने नियम के पवित्र जनों से अधिक महिमामय दिखाई दे सके। इसलिए यदि हम पाते हैं कि हम दोष भावना, हताशा और निराशा में आज हम जी रहे हैं, तो इसका कारण यह है क्योंकि हम आज भी पुरानी वाचा के सिद्धान्तों से जी रहे हैं (२ कुरिन्थियों ३:९)।

दो बातों पर प्रभु यीशु ने बार बार अपनी सेवकाई में ज़ोर दिया - परमेश्वर में विश्वास और पवित्र आत्मा की सामर्थ।

आदम ने जब जीवन के वृक्ष के बजाए भले और बुरे के वृक्ष का चुनाव किया, तब उसने पवित्र आत्मा की सामर्थ में विश्वास के जीवन को खो दिया (उत्पत्ति २:९)। उसने परमेश्वर के पर निर्भर रहने के बजाए अपने अन्दर वास करने वाले भले और बुरे के ज्ञान का चुनाव किया।

जीवन का वृक्ष नई वाचा के अन्तर्गत विश्वास के जीवन को दर्शाता है। और भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष पुरानी वाचा के अन्तर्गत अपने ही प्रयासों को दर्शाता है। यदि आदम ने जीवन के वृक्ष का चुनाव किया होता, तो वह विश्वास से जीता - निरन्तर परमेश्वर पर निर्भर रहता। दुर्भाग्यवश कई विश्वासी भी आज ऐसे जी रहे हैं। सभी धर्म अनुयायियों को सिखाते हैं कि वे भला करें और बुराई से बचे रहें। मसीह लोग जो पवित्रता के खोजी है, वे भी भलाई करते हैं और बुराई से दूर रहते हैं। और पवित्रता को पाने के प्रयास में, वे समान्य तौर पर वे भले और बुरे के बीच विभिन्न नियमों और रीवाज़ों के द्वारा सुक्ष्म से सुक्ष्म भेद उत्पन्न करते हैं!! फिर भी उनमें से अधिकतर लोग कभी पवित्र जीवन के निकट नहीं आते। क्यों? क्योंकि वे अपने कामों से उनकी खोज करते हैं और विश्वास से नहीं।

१५०० वर्षो तक परमेश्वर ने इस्राएलियों को व्यवस्था के द्वारा सिखाया कि भला क्या है और बुरा क्या है। परंतु व्यवस्था के द्वारा आज्ञा दिए गए भले कामों के प्रति आज्ञाकारिता एक भी इस्राएलियों को अनन्त जीवन का भागी न बना सकी। किसी भी प्रकार के नियमों और कानूनों के अनुसार चलने से - चाहे कितना ही ऊंचा दर्जा क्यों न हो हम कभी वास्तविक धार्मिकता के निकट पहुंच पाएंगे, आज भी नहीं।

सच्ची पवित्रता मनुष्य के प्राण में परमेश्वर का जीवन है - और परमेश्वर ने इसे हमें उपहार के रूप में दिया है। हम उसे कभी हासिल नहीं कर सकते। हमें उसे विश्वास से ग्रहण करना। पौलुस ने कहा कि जब वह व्यवस्था की बातों को नहीं जानता था, तब उसने महसूस किया कि वह जीवित है। परंतु जब वह परमेश्वर की व्यवस्था की बातों को समझ गया, तब उसे अपने जीवन की गलतियों का इस कदर एहसास हो गया कि उसने खुद को ''मरा हुआ'' महसूस किया (रोमियों ७:९)!! यह उन लोगों का भी अनुभव है जिन लोगों ने नया जन्म पाया है। वे खुश और जीवित दिखाई देते हैं, जब तक वे केवल अपने पापों की क्षमा के विषय में सुनते हैं। परंतु जैसे ही वे पाप पर विजय के विषय में और परमेश्वर की आज्ञाओं के प्रति आज्ञाकारिता के विषय में सुनते हैं, वे खुद को दोषी और दुखी और मरा हुआ महसूस करते हैं।

परंतु पौलुस पुराने वाचा की व्यवस्था में नहीं रूका - न ही हमें रूकना है। परमेश्वर ने पौलुस पर दूसरी व्यवस्थाप्रगट की - मसीह यीशु में जीवन के आत्मा की व्यवस्था। इसी व्यवस्था ने अंत में उसे पापों से छुटकारा दिया (रोमियों ८:२)। कई लोग भले काम करने के द्वारा पवित्र बनने की कोशिश करते हैं। याद रखें कि हव्वा ने उस वृक्ष का फल खाया क्योंकि वह अच्छा दिखता था!! वह बुरा करने की कोशिश नहीं कर रही थी!! उसने वह फल खाया, इसलिए नहीं कि वह शैतान के समान बनना चाहती थी, परंतु वह परमेश्वर के समान बनना चाहती थी -क्योंकि शैतान ने उससे यही प्रतिज्ञा की थी (उत्पत्ति ३:५)। जो लोग व्यवस्था के अनुसार जीते हैं, वे भी आज यहीं गलती करते हैं -यह सोचकर कि वे बाहरी भले कामों के द्वारा परमेश्वर के समान बन सकते हैं।

बहुत सी भलाई जो हम कई मसीही विश्वासियों के जीवनों में देखते हैं -वह सच्ची पवित्रता से नहीं आती, परंतु अच्छी परवरिश से आती है। इनमें से कई मसीही विश्वासी भले होते हैं, परंतु उनमें परमेश्वर के लिए भूख नहीं है। वे बाईबल ज्ञान को इकट्ठा करते हैं, परंतु परमेश्वर की ओर से उनके पास कोई प्रकाशन नहीं रहता। परिणामस्वरूप उनके जीवन अपने आस पास के अच्छे अविश्वासियों से भिन्न नहीं होते। ऐसे सभी विश्वासियों ने कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण खो दिया है जो परमेश्वर चाहता है कि वे पाए - ईश्वरीय स्वभाव।

सबसे पहले परमेश्वर हम से भलाई करवाने की कोशिश नहीं कर रहा है, परंतु वह चाहता है कि हम उस पर भरोसा रखे ताकि वह हमें अपना स्वभाव दे सके। उसकी दृष्टि में, धर्मी वे लोग नहीं जो भलाई करते हैं, परंतु वे लोग है जो विश्वास से जीवित है (देखें रोमियों ४:५ और हबक्कूक २:४)। हबक्कूक २:४ में लोगों के दो समूहों की तुलना करता है - जो प्रभु में विश्वास करते हैं और जो घमण्डी है। जो घमण्डी है वे विश्वास से नहीं जी सकते। इसका कारण कई लोग परमेश्वर के वरदानों को बिना मूल्य रूप से ग्रहण नहीं करते, परंतु सरल विश्वास से, क्योंकि वे इतने घमण्डी हैंक्योंकि वे कुछ भी मुफ्त में ग्रहण नहीं करते। वे स्वयं खुद कुछ करके अपनी क्षमा और पवित्रता को हासिल करना चाहते हैं।

शैतान आज भी मसीहियों को बताता है (जैसा उसने हव्वा को बताया) कि भले और बुरे के फर्क को जानने के लिए उन्हें परमेश्वर पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है वह उन्हें बताता है कि वे अपने विवेक या बाईबल पढ़कर इस फर्क को जान सकते हैं। परंतु कई अविश्वासी भी अपने विवेक से जीते हैं - और काफी अच्छा जीवन बिताते हैं मसीही विश्वासी भी ऐसा जीवन बिता सकता है - परंतु वह परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी नहीं होगा। कई विश्वासी अपने मसीही जीवन का आरम्भ अच्छा करते हैं - अपने धर्मी ठहराए जाने के लिए केवल परमेश्वर पर भरोसा रख के। परंतु गलतिया के मसीहियों के समान -वे अपने ही प्रयासों से सिद्ध बनने की कोशिश करते हैं (गलतियों ३:३)। परमेश्वर के लिए उन्होंने कितना किया और उसके द्वारा उन्होंने अपनी सेवकाई में क्या फल हासिल किया इसके आधार पर वे अपना आत्मिक मूल्य आंकते हैं। और वे सन्तुष्ट महसूस करते हैं। परंतु जब लोगों ने यीशु से पूछा कि वे किस प्रकार वे परमेश्वर के कामों को करेंगे, तब उसने उन्हें भले काम करने के लिए नहीं कहा। उसने उसने कहा कि वे उस पर विश्वास करें (यूहन्ना ६:२८-२९

मसीही जीवन में कई विरोधाभास है और यहां पर पहला विरोधाभास है जिसका उद्धार पाने के बाद हमें सामना करना पड़ता है : हम जानते हैं कि यीशु हमें इतने पूर्ण रूप से धर्मी बनाता है कि अब हम परमेश्वर के सामने ऐसे खड़े हैं मानों हमने कभी कोई पाप नहीं किया, क्योंकि परमेश्वर हमसे प्रतिज्ञा करता है कि वह हमारे पिछले पापों को कभी याद नहीं करेगा (इब्रानियों ८:१२)। उसी समय हमें यह भी बताया गया है कि हम अपने पिछले पापों को न भूले, कहीं हम अन्धे न बने और धूंधला न देखें (२ पतरस १:९)!!

इसलिए एक ओर हम देखते हैं कि परमेश्वर हमारे पिछले पापों को नहीं याद करता और दूसरी ओर हमें बताया गया है कि हम उन्हें कभी न भूले!! हम इस विरोधभास के साथ कैसे जी सकते हैं!

इस सच्चाई के प्रति और सचेत होकर कि यीशु के लहू ने हमारे पिछले पापों को धो दिया है, बजाए इसके कि हम उन पापों का एहसास रखें।

उस अन्तिम वाक्य को फिर से एक बार पढ़े, क्योंकि यह मसीही जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। यदि आप उस पर विश्वास करते हैं, तो यह सत्य आपको स्वतंत्र कर सकता है।

हमारे पिछले अपराधों के विषय में दोषी महसूस करने के विषय में कोई नम्रता नहीं है। यह अविश्वास है, नम्रतानहीं, और मसीह के लोहू के लिए अपमान है। इस प्रकार का अविश्वास परमेश्वर को किसी तरह से महिमा प्रदान नहीं करता। पौलुस ने खुद को ''सब में बड़ा पापी'' कहा, जबकि वह तीस वर्षों से मसीही था (१ तीमु १:१५)। फिर भी उसी समय उसने यह भी कहा, ''मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी में नहीं ठहराता'' (१ कुरिन्थियों ४:४)। दोनों बातें सच थी। यह आश्वासन हमें परमेश्वर के सामने बड़ा हियाव प्रदान करता है और शैतान के आरोपों और उन डर की बातों के विषय में साहस प्रदान करता है जिससे शैतान हमें डराने की कोशिश करता है।

मसीही पुस्तकालयों में आज सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकें वे हैं जो विश्वास और पवित्र आत्मा के विषय पर आधारित है परंतु इनमें से अधिकतर पुस्तकें मसीही विश्वासियों को नकली विश्वास और नकली अनुभवों में ले जाती है यह ''विश्वास'' जिसके शिक्षा ये पुस्तके देते हैं, धनवान और स्वस्थ बनने का विश्वास है -पवित्र और आत्मिक बनने का नहीं। मसीहियों को बताया गया है कि वे परमेश्वर से जो चाहे पा सकते हैं, बशर्ते उनके पास पर्याप्त विश्वास हो यह शिक्षा मौलिक रूप से पहले प्रेरितों की शिक्षा और रीति से और उन धर्मी मिशनरियों की शिक्षा (१९ वी सदी के और २० वी सदी के आरम्भ के) जिन्होंने परमेश्वर के राज्य को बढ़ाने के लिए अपने जीवनों का बलिदान किया, विरूद्ध है। सच्चा विश्वास वह है जो हमें संसार पर जय पाने की योग्यता प्रदान करता है (१ यूहन्ना ५:४) - संसार में ''आंखों की अभिलाषा, शरीर की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड'' है (१ यूहन्ना २:१६)। जिस प्रकार यीशु ने इस संसार पर जय पायी, हम भी उस पर जय पा सकते हैं। (यूहन्ना १६:३३; प्र.वाक्य ३:२१ देखें)। जब हम संसार पर विजय पाते हैं, तब शैतान यह कहकर हमें धोखा नहीं दे सकता कि स्वास्थ और धन के द्वारा प्राप्त होने वाले सुख विलास परमेश्वर की सहभागिता से आने वाले सुख से अधिक श्रेष्ठ है।

परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी संगति का शुद्ध आनन्द चखे केवल वही अन्य सुखों की इच्छा को दूर भगाएगा (भजन १६:११)। कई लोग मानवी साधनों से पापमय सुखों के आकर्षण पर विजय पाने की कोशिश कर रहे हैं। परंतु जब हम परमेश्वर की सहभागिता को चखते हैं, केवल तभी हम सचमुच स्वतंत्र हो सकते हैं। परमेश्वर में विश्वास और पवित्र आत्मा की सामर्थ आपको उस हर बन्धन से मुक्त कर सकती है जो शैतान आप पर लाता है।

क्या आप पाते हैं कि आप कुछ संसारिक सुखों को, जो आपको आकर्षित करते हैं त्यागने के लिए अनिच्छुक है? तो प्रभु को पुकारें, जैसा पतरस ने उस समय किया जब वह समुद्र में डूब रहा था। उसने कहा, ''प्रभु, मुझे बचाइए।'' आप पाएंगे कि परमेश्वर आपको न केवल पाप से स्वतंत्र होने की इच्छा देगा, परंतु उस पाप के लिए नफ़रत भी देगा!! नई वाचा में परमेश्वर ही है जो जो हमारे मन में इच्छा और काम दोनों बातों के करने का प्रभाव डालता है (फिलिप्पियों २:१३)। नई वाचा कितना अद्भुत सुसमाचार है!! हम यीशु के जीवन की नकल नहीं उतार सकते हमें पवित्र आत्मा केद्वारा उसमें भागी होना है। अधिकतर मसीही लोग इसका अनुभव नहीं करते क्योंकि वे आत्मा में दीन नहीं हैं। इसका मतलब वे अपना जीवन परमेश्वर की ज़रूरत के निरन्तर एहसास के साथ नहीं जीते। वे खुद पर भरोसा रखते हैं और स्वतंत्र हैं। यीशु ने केवल प्यासों को अपने पास आकर पीने के लिए निमंत्रण दिया। विश्वास से चलने के लिए हमें निरंतर प्यासा होना है (आत्मा में दीन), हमेशा हमे परमेश्वर के सामर्थ की ज़रूरत का एहसास रखना है। हमारे हृदय में निरंतर एक पुकार होनी चाहिए (भले ही अनकही) की हम आत्मा से भर जाए और उसकी सामर्थ का अनुभव करें। जो यीशु के पास आकर पीते हैं, वे पाएंगे कि उनमें से जीवन जल की नदियां बह रही है (पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन -यूहन्ना ७:३७-३८)। इस प्रकार कमज़ोर से कमज़ोर विश्वासी नई वाचा में विश्वास के इस जीवन की महिमा को अनुभव कर सकता है और बलवान बन सकता है जिसके पास कान हो वह सुन ले।