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एक गुप्त स्थान में परमेश्वर के सम्मुख रहें और आपके हृदय में से उसके लिए निरंतर एक पुकार उठती रहे। जब परमेश्वर के लिए यह लालसा मिट जाती है, तब मसीहियत एक सूखा और खोखला धर्म बन कर रह जाती है। इसलिए परमेश्वर के लिए अपनी लालसा को किसी भी कीमत पर बचाए रखे। यह आपके विश्वास का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जैसी हरिणी जल के लिए प्यासी होकर हाँफने लगती है, वैसे ही हमें लगातार परमेश्वर की लालसा करते रहनी चाहिए।

हमारे लिए परमेश्वर की शिक्षा में ऐसा बहुत कुछ शामिल होता है जिसे संसार “निष्फलताएं ” कहता है। लेकिन ये हमारे लिए कुछ बेहतर करने के लिए "परमेश्वर की नियुक्तियां" हैं। अगर हम ऐसी निष्फलताओं का सामना नहीं करेंगे, तो हम कभी दूसरों को परामर्श नहीं दे सकेंगे। जीवन की शिक्षा में निष्फल होना शामिल रहता है, क्योंकि अगर हमें एक ऐसे संसार में लोगों की मदद करनी है जिसमें 99.9% लोग निष्फल हैं, तो निष्फलता ज़रूरी है। निष्फलता के ये उद्देश्य हैं: (1) हमें नम्र व दीन करना ( तोड़ना), और (2) हमें दूसरों के प्रति ज़्यादा संवेदनशील बनाना ।

आपके आत्मिक संघर्ष भी आपकी शिक्षा का हिस्सा हैं। अगर आप पृथ्वी की सांसारिक डिग्रियों के लिए इतनी मेहनत करते हैं, तो आपको एक अनन्त, स्वर्गीय डिग्री के लिए और भी कितनी ज़्यादा मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। समय कम है और दिन बुरे हैं। हमारे सारे पार्थिव कामों में हम अपने मन में हमेशा एक अनन्त परिप्रेक्ष्य बनाए रहें। हर समय प्रभु के साथ अपना एक शुद्ध भीतरी चाल-चलन बनाए रहें और लगातार अपना न्याय करते रहें।

पौलुस ने तीमुथियुस से कहा, “ पवित्र आत्मा के द्वारा, जो हममें वास करता है, अपनी उत्तम धरोहर की रखवाली कर" (2 तीमु. 1:14)। परमेश्वर ने हमारी देह एक पुण्य धरोहर की तरह हमें दी हैं कि हमारी पृथ्वी की यात्रा के दौरान हम उन्हें सम्भाले रहें। हमें प्रतिदिन ईसे परमेश्वर को अर्पित करनी हैं कि ये सारे पाप से शुद्ध हो सकें, और जिस दिन तक हम अपने जीवन की यात्रा पूरी नहीं कर लेते, ये पवित्रता में संरक्षित रहें।

इसका हम इस तरह चित्रण कर सकते हैं: यह ऐसी बात है जैसे एक कम्पनी ने हमें 50 लाख रुपए दिए हैं कि हम वह राशि सुरक्षित रूप में एक जगह से दूसरी जगह पहुँचा दें। लेकिन हम उसमें से कुछ रुपए उड़ा देते हैं और बाकी रास्ते में खो देते हैं। अब हम पश्चाताप् करते हुए एक नाकाम दशा में प्रभु के पास आते हैं। तब वह क्या करता है? वह हमें अस्वीकार नहीं करता। इसकी बजाय वह हमें क्षमा कर देता है और दूसरे 50 लाख रुपए देता और हमसे कहता है कि हम अपने जीवन की यात्रा के अंत तक उसे सम्भाले रहें । परमेश्वर कितना भला है!

मसीहियों के रूप में हमारी साक्षी संसार के स्तर से बहुत बढ़-चढ़ कर होनी चाहिए। हम कभी ऐसा कुछ न करें जिसमें बुराई की एक झलक भी नज़र आती हो। जब हमें किसी बात का पूरा यकीन न हो, तो यही अच्छा है कि हम जानबूझ कर लापरवाही और नासमझी में पाप करने की बजाय सचेत रहते हुए और सब देखने-समझने के बाद अनजाने में कोई भूल कर बैठें।