द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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प्रभु ने जो महान आज्ञा हमें दी, वह है “ सुसमाचार प्रचार” करना (मरकुस 16:15) और फिर “उन्हें शिष्य बनाना और उन्हें वह सब कुछ सिखाना जिसकी आज्ञा यीशु ने दी (मत्ती 28:19, 20)”। इस उदाहरण पर विचार करें: अगर आप 100 लोगों को लकड़ी का एक बड़ा लट्ठा उठाए हुए देखें जिसे एक तरफ़ से 99 व्यक्तियों ने उठाया हुआ हो और दूसरी तरफ़ 1 व्यक्ति ने उठाया हुआ हो, तो आप मदद करने के लिए किस तरफ़ जाएंगे? आज, बहुत से देशों में 99% मसीही सुसमाचार प्रचार में लगे हुए हैं और सिर्फ़ 1% लोग ही परिवर्तित लोगों को शिष्य बना रहे हैं और उन्हें एक स्थानीय कलीसिया में निर्मित कर रहे हैं। इसलिए मैंने लकड़े का लट्ठा पकड़े हुए 1% लोगों की तरफ़ जाकर मदद करने का फ़ैसला किया। मैं उनके ख़िलाफ़ नहीं हूँ जो दूसरी तरफ़ है। उनकी भी ज़रूरत है। लेकिन वहाँ पहले ही बहुत लोग है।

पौलुस और अपुल्लोस ने साथ मिलकर काम किया और उनके द्वारा मन फिराए हुए लोग प्रभु के लिए थे और उनकी कलीसियाए भी प्रभु के लिए थी। पौलुस ने बोया और अपुल्लोस ने सींचा, लेकिन परमेश्वर है जिसने बढ़ाया। इसलिए सारी महिमा परमेश्वर को ही मिलनी चाहिए। पौलुस अपने बारे में और अपुल्लोस के बारे में कहता है, “हम कुछ भी नहीं है” (1 कुरिन्थियों 3:7)। इसी वजह से ही वे एक सुसंगत रूप में काम कर सके। दो ऐसे लोग जो स्वयं को कुछ भी नहीं समझते, वे आसानी से एक दूसरे के साथ मिलकर काम कर सकते हैं। लेकिन जब दोनों में से एक व्यक्ति यह सोचने लगता है कि वह कुछ है, तब समस्याएं पैदा होने लगती है।

यदि आप कहीं एक स्थानीय कलीसिया का निर्माण करें, तो मैं आपको इस क्षेत्र में एक सलाह देना चाहूंगा, क्योंकि मैंने भारत और दूसरी जगहों में प्रभु को 40 साल तक कलीसियाए स्थापित करते देखा है। आप पहले स्वयं कुछ भी नहीं है, ऐसे बन जाए और अपने सभी मन फिराए लोगों को भी ऐसा बना दे। फिर आप एक अद्भुत कलीसिया बना सकेंगे - ऐसी कलीसिया जिसमें स्पर्धा नहीं बल्कि सहयोग होगा। एक ऐसी कलीसिया जिसमें उसके अगुवे से लेकर सबसे नया मन फिराया हुआ व्यक्ति तक सभी सिर्फ़ एक शून्य हो, तब वह जगत की सबसे अच्छी कलीसिया होगी। वे सब शून्य हो सकते हैं, लेकिन जब आप उन सबके सामने यीशु को रख देंगे- जो क्रम “1” है, तो सिर्फ़ 9 लोगों की कलीसिया की क़ीमत भी 100 करोड़ हो जाएगी – 1,000,000,000! इसलिए आप कुछ बनने का नहीं बल्कि पौलुस और अपुल्लोस की तरह कुछ भी नहीं बनने का फ़ैसला करें।

फिर पौलुस आगे बढ़ते हुए एक बुनियाद रखने और उस पर निर्माण करने के बारे में बताता है। बुनियाद और इमारत दोनों ही महत्वपूर्ण है। पौलुस ने पहले एक बढ़ते हुए पेड़ का उदाहरण दिया – बोना और पानी देना। अब वह एक इमारत का चित्र प्रस्तुत करता है – बुनियाद और ढांचा (1 कुरिन्थियों 3:10-12)। कलीसिया की बुनियाद सिर्फ़ मसीह है – क्रूस पर उसका सिद्ध प्रायश्चित जिसमें हमारा कोई काम जुड़ा हुआ नहीं है। लेकिन फिर हमें यह मालूम होना चाहिए कि इस बुनियाद पर एक अनंत ढांचे का निर्माण कैसे करना है। आप किस तरह की कलीसिया का निर्माण कर रहे हैं? क्या वह ऐसी है जो क़द या गुणवत्ता में प्रभावशाली है? हरेक मसीही सेवक को अपने आपसे यह सवाल पूछना चाहिए : क्या मुझे संख्या चाहिए या गुणवत्ता? हम सोने, चाँदी और मूल्यवान पत्थरों से, या लकड़ी, या घास-फूस और भूसे से निर्माण कर सकते हैं (1 कुरिन्थियों 3:12)। अंतिम दिन में संख्या नहीं बल्कि गुणवत्ता ही मायने रखती है (1 कुरिन्थियों 3:13,14)

एक निश्चित धनराशि से, आप जितना सोना, चाँदी और मूल्यवान पत्थर ख़रीद सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा मात्रा में लकड़ी, घास-फूस और भूसा ख़रीद सकते हैं। इसलिए अगर आप कुछ ऐसा विशाल और भव्य बनाना चाह रहे है जो लोगों को अभी यहाँ प्रभावित करे, तो आप लकड़ी, घास-फूस और भूसे का चुनाव करेंगे। लेकिन अगर आपको यह मालूम हो कि आपकी इमारत के पूरा होते ही उसे आग द्वारा परखा जाएगा, तो फिर यदि चाहे आपकी इमारत का आकार उस लकड़ी, घास फूस और भूसे की इमारत का सिर्फ़ 1 प्रतिशत ही क्यों न हो, फिर भी आप सोना, चाँदी और मूल्यवान पत्थर ही चुनेंगे जो आग को सह सकते हैं। हम सबके पास सीमित समय है। हमारे पास जीने के लिए हज़ारों साल का समय नहीं है। नया जन्म पाने के बाद हमारे पास प्रभु के लिए ज़्यादा से ज़्यादा 60 वर्ष हो सकते हैं। तो आप ये 60 वर्ष कैसे ख़र्च करेंगे? क्या आप कुछ विशाल लेकिन एक हल्की गुणवत्ता वाला बनाना चाहेंगे जो अंतिम दिन जलकर भस्म हो जाए? या आप कुछ ऐसा बनाएंगे जो चाहें छोटा हो, लेकिन सबसे तीव्र आग द्वारा परखे जाने पर भी टिका रह सके?

बहुत से विश्वासी ऐसी कलीसियाए बनाते हैं जो क़द में तो बड़ी होती है लेकिन उनकी गुणवत्ता हल्की होती है। लेकिन कुछ लोग बुद्धिमानी से बनाते हैं – अच्छी गुणवत्ता वाली छोटी कलीसियाए – जिनमें वे मन-फिराव और शिष्य बनने का प्रचार करते हैं। आंकड़ों के अनुसार ये पहली कलीसिया जैसी प्रभावशाली नज़र नहीं आएगी। लेकिन एक दिन जब प्रभु सब कुछ आग से परखेगा, तो लकड़ी, घास-फूस और भूसे की विशाल इमारतें पूरी तरह नष्ट हो जाएंगी और उनका कुछ भी नहीं बचेगा। लेकिन जिन लोगों ने अपना पूरा जीवन ख़र्च करके शिष्य बनाते हुए छोटी इमारतें बनाई और जिन्हें दूसरे मसीहियों ने तुच्छ जाना क्योंकि उनका काम बहुत बड़ा नहीं था, वे यह देखेंगे कि उनकी इमारत आग में से निकलकर अनंत में पहुँच गई है।

तो आप अपना जीवन कैसे ख़र्च करेंगे? यीशु ने कहा, “जाओ, और सब जातियों के लोगों को शिष्य बनाओ”। क्या आप कुछ ऐसा बना रहे हैं जो हमेशा के लिए बना रहेगा? यह वह सवाल है जो हमारे मनों में हमेशा बना रहना चाहिए। जैसा परमेश्वर चाहता है, क्या मैं उस तरह बना रहा हूँ – उन सिद्धांतों के अनुसार जो यीशु ने सिखाए हैं? क्या मैं ऐसे शिष्य बना रहा हूँ जो सब से बढ़कर यीशु को प्रेम करते हैं, या मैं सिर्फ़ ऐसे धर्म परिवर्तित लोग इकट्ठे कर रहा हूँ जो सिर्फ़ यह कहते हैं, “प्रभू यीशु, मैं तुझमें विश्वास करता हूँ” लेकिन शिष्य बनने में कोई रुचि नहीं रखते। अगर प्रभु के सामने खड़े होने के दिन आप अपने जीवन भर के सारे कामों को भस्म होता देखेंगे, तो सोचें कि आपको कितना पछतावा होगा। यह हो सकता है कि आप उद्धार पाकर स्वर्ग में चले जाए, लेकिन आपको स्वर्ग में अनंत तक उस पछतावे के एहसास में रहना पड़ेगा कि आपने उस एक पार्थिव जीवन को बर्बाद कर दिया जो परमेश्वर ने आप को दिया था। मैं ऐसा पछतावा नहीं चाहता। मैं सोने, चाँदी और मूल्यवान पत्थरों से निर्माण करना चाहता हूँ। मैं यहाँ प्रभु के लिए एक गुणवत्ता से भरा काम करना चाहता हूँ।