द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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पतरस तब ही एक तरसपूर्ण प्रेरित बन सका जब उसने गलती किया और प्रभु का तीन बार इन्कार करने के पाप में पड़ा। निश्चित रूप से यह परमेश्वर की इच्छा नहीं थी कि पतरस इस तरह पाप करे फिर भी हम देखते हैं कि परमेश्वर ने पतरस के भीतर कार्य करने के लिये इसकी अनुमति दिया। इस बात ने पतरस को उन लोगों के प्रति कोमल और सहानुभूतिपूर्ण बनाया जो जीवन में असफल हो गए थे।

यीशु ने एक बार भी पाप नहीं किया, और फिर भी वह असीमित रूप से पापियों के विषय तरसपूर्ण और दयालु था। परंतु बाकी आदम जाति के विषय ऐसा नहीं हुआ। जो लोग अत्याधिक पाप में नहीं पड़े हैं वे पापियों के प्रति कठोर और दयारहित और अहंकारी बन जाते हैं।

जब हम उन परिस्थितियों को देखते हैं जिनके कारण पतरस इस घोर पाप में पड़ा, तो हम देखते हैं कि परमेश्वर उसे सरलता से प्रभु को इन्कार करने के पाप की परीक्षा में पड़ने से बचा सकता था। फिर भी परमेश्वर ने उसे परीक्षा के उन क्षणों में न बचाने का चुनाव किया।

यूहन्ना 18:15-18 में हम देखते है कि यूहन्ना और पतरस महायाजक के दरबार तक यीशु के पीछे गए। क्योंकि यूहन्ना महायाजक को जानता था, द्वारपाल ने उसे भीतर जाने दिया। परंतु पतरस भीतर नहीं जा सका। इसलिये यूहन्ना ने आकर द्वारपाल से बात किया और पतरस के लिये भी अंदर जाने की अनुमति प्राप्त कर लिया। उस समय वह बात अच्छी ही दिख पड़ी। परंतु, ध्यान दें कि उस रात पतरस पाप न किया होता यदि यूहन्ना उसे आँगन में न ले गया होता। क्योंकि वह वही भीतरी स्थान था जहाँ पतरस को प्रश्न पूछा गया था और वहीं उसने प्रभु को तीन बार इन्कार किया था (देखें यूहन्ना 18:17,25,27)।

इसलिये हम यह पूछ सकते हैं, ''प्रभु ने ऐसा क्यों होने दिया? उसने पतरस को आँगन में प्रवेश करने से क्यों नहीं रोक दिया? क्या यह परमेश्वर की ग़लती थी? नहीं। परमेश्वर ने अपने सर्वोच्चता में यूहन्ना को अनुमति दिया कि वह पतरस को भीतर ले लाए, ताकि पतरस उसकी उस गलती से सीख सके। वह अपनी शिक्षा के उस पाठ्यक्रम को पूरा किए बिना प्रेरितों का अगुवा और आरंभिक कलीसिया का अगुवा नहीं बना होता।

पतरस की परीक्षा लेने के लिये शैतान के अपने एजेन्ट तैयार थे, परंतु उसे ऐसा करने के लिये परमेश्वर से अनुमति लेने की जरूरत थी। परंतु, यीशु पतरस के लिये प्रार्थना कर रहा था, कि उस भारी असफलता या ग़लती के क्षण में उसका विश्वास असफल न हो जाए (लूका 22:31,32); और यीशु की प्रार्थना का उत्तर मिला। पतरस उस अनुभव से टूट गया और एक तरसपूर्ण व्यक्ति बनकर निकला। उसके बाद फिर कभी वह पापियों का निर्दयता से इन्कार नहीं किया होता। जब भी उसकी ऐसा करने की परीक्षा होती, उसे अपनी असफलता याद आई होती और वह किए जाने वाले इन्कार को रद्द कर देता।

जो कुछ आपके जीवन में सबसे बुरा हुआ है, परमेश्वर उसे आपके सर्वोत्तम में बदल सकता है, तब जब आपके पास विश्वास हो। पिन्तेकुस्त के सात सप्ताह पूर्व पतरस ने कई बार चाहा होगा कि काश उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को यूहन्ना उसे आँगन में न ले जाता तो वह प्रभु का इन्कार ही न करता। परंतु तब वह टूट नहीं पाता, और वह पिन्तेकुस्त के दिन पापियों को सुसमाचार न सुना पाया होता।

हम जानते हैं कि पतरस तब भी पाप के विरुद्ध प्रचार करता रहा, क्योंकि वह उसकी पत्री में यीशु के पीछे चलने के विषय लिखता है, ''जिसने कोई पाप नहीं किया'', ''और पाप न करने के विषय लिखता है (1 पतरस 2:2,22; 4:1,2)। परंतु अब वह तरस के साथ प्रचार करता है। यही कारण था कि उसे पिन्तेकुस्त के दिन यहूदियों को सुसमाचार सुनाने का अवसर मिला और कुरनेलियुस के घर में अन्य जातियों को। उनमें से किसी भी अवसर पर परमेश्वर याकूब या यूहन्ना का उपयोग कर सकता था। परंतु उसने ऐसा नहीं किया। उसने परतस का उपयोग किया जो दुर्भाग्यपूर्ण रीति से असफल था - क्योंकि वह अन्य लोगों की अपेक्षा भटके हुए पापियों के साथ ज्यादा तरसपूर्ण रीति से बोल सकता था।

दाऊद भी पतरस के समान एक और व्यक्ति था। एक बार जब वह आलस्य के कारण लड़ाई में नहीं गया वह बुरी तरह फिसल गया और पाप में पड़ गया - ऐसा पाप जो उसके जीवन में उसके विरुद्ध एक काला धब्बा बना गया, और उसके बाद शताब्दियों तक भी (2 शमुवेल 11:1-5)। पवित्र आत्मा लिखता है, ''दाऊद वह किया करता था, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था, और हित्ती उरिय्याह की बात के सिवाय और किसी बात में यहोवा की किसी आज्ञा से जीवन भर कभी न मुड़ा।'' (1 राजा 15:5)। फिर भी परमेश्वर ने दाऊद की असफलता का उपयोग किया और उसे भजन 51 लिखने पर मज़बूर किया - वचन का एक प्रेरणादायक भाग जिसने लाखों लोगों को सदियों से आशीषित किया है, जो दाऊद के अन्य लेखों से कही ज्यादा प्रभावशाली है। दाऊद यदि उससे छोटे पाप में पड़ता तो वह इस भजन को कभी नहीं लिख पाता। उसकी असफलता का बड़ा होना, गहरा होना जरूरी था और सार्वजनिक रूप से उजागर होना भी जरूरी था, ताकि वह पूरी तरह नम्र बने और टूट जाए। उसके बाकी के जीवन के लिये वह एक टूटे हृदय वाला पुरुष था। और यीशु भी स्वयँ को दाऊद की संतान कहलाता है।