द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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मत्ती 13:1-52 में, हम यीशु द्वारा सुनाए गए सात दृष्टांतों के बारे में पढ़ते है। ये स्वर्ग के राज्य के दृष्टांत कहलाए जाते है। पहला बीज बोने वाले का दृष्टांत है। यह ध्यान देने योग्य है कि इस अध्याय में यीशु ने स्वर्ग के राज्य की चर्चा एक बाहरी अभिव्यक्ति के रूप में की– जिस तरह से इस संसार के लोग “कलीसिया” को देखते है। इसलिए उसने कहा कि स्वर्ग के राज्य में अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की भूमि के हृदय वाले लोग है।

यीशु ने यह भी कहा कि स्वर्ग का राज्य ऐसे खेत की तरह है जिसमें अच्छे गेहूं और जंगली पौधे दोनों है। उसने बाद में यह स्पष्ट किया कि खेत कलीसिया नहीं संसार है (मत्ती 13:38)। कुछ मसीही इस दृष्टांत का उल्लेख एक ग़लत समझ के साथ करते हुए कहते हैं, “यीशु ने क्योंकि यह कहा है कि अच्छे गेहूं और जंगली घास दोनों को कलीसिया में बढ़ने देना है और हमें उन्हें अलग नहीं करना चाहिए, इसलिए हमें मन-फिराए और मन न फिराए दोनों ही प्रकार के लोगों को कलीसिया में रहने देना चाहिए”। वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्होंने पवित्र-शास्त्र को सही तरह नहीं जाना है। खेत संसार है – और परमेश्वर कलीसिया में नहीं परंतु संसार में विश्वासियों और अविश्वासियों को साथ-साथ बढ़ने देता है। स्थानीय कलीसिया में हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए (जहाँ तक मानवीय तौर पर परखा जा सके) कि कलीसिया के सदस्य सिर्फ़ वही लोग हो जिन्होंने अपने पापों से मन फिरा लिया है और जिन्होंने मसीह में विश्वास द्वारा नया जन्म पा लिया है। अन्य लोग कलीसिया में आ सकते हैं और संदेश सुन सकते हैं – उनका स्वागत किया जाए। लेकिन उन्हें यह स्पष्ट रूप से बता दिया जाना चाहिए कि वे एक स्थानीय कलीसिया – मसीह की देह का तब तक अंग नहीं बन सकते हैं जब तक कि उनका नया जन्म नहीं हो जाता।

मत्ती 13: 31-32 एक राई के दाने का दृष्टान्त है जो बढ़कर सामान्यतः एक छोटा पौधा बनता है। लेकिन हम उसे यहाँ एक असामान्य रूप में बढ़कर एक बड़ा पेड़ बनता हुआ देखते हैं। यह दृष्टांत यह बताता है कि परमेश्वर एक स्थानीय कलीसिया को किस रूप में बड़ा नहीं होने देना चाहता। परमेश्वर चाहता है कि हरेक कलीसिया थोड़े से भाई बहनों का एक समूह हो (राई के छोटे पौधे की तरह) जो व्यक्तिगत रूप में एक दूसरे को जाने, एक दूसरे से प्रेम करें और अपने पास पड़ोस में मसीह के जीवन को लोगों के बीच प्रकट करें। लेकिन प्रचार करने का दान पाएँ हुए प्रचारकों ने परमेश्वर की योजना के ख़िलाफ़, विशाल कलीसियाए खड़ी कर दी है (बड़े पेड़ की तरह), जहाँ लोग सिर्फ़ संदेश सुनने के लिए इस तरह ही आते हैं जैसे वे कोई मैच या पिक्चर देखने जाते हैं। यीशु ने कहा कि वे थोड़े ही लोग है जो जीवन का मार्ग पाते हैं (मत्ती 7:13,14)। लेकिन चतुर प्रचारक पवित्रता के मानक स्तर को नीचा करके, मन फिराव के संदेश से बच निकलने और अपनी खुदी (अहम) का इनकार करके अपनी सूली उठाने के संदेश को पूरी तरह अनदेखा करने द्वारा आसानी से एक बड़ी भीड़ इकट्ठी कर लेते हैं। इस तरह, एक ऐसे लोगों की भीड़ जमा हो जाती है जिनकी यीशु के शिष्य बनने में कोई दिलचस्पी नहीं होती; लेकिन वे रविवार की सुबह सिर्फ़ एक अच्छा प्रचार सुनने आ जाते हैं। जब आप इस तरह अपनी कलीसिया का आकार/ संख्या बढ़ाते हैं, तब वह होता है जिसके बारे में फिर यीशु ने कहा: आकाश के पक्षी (जिन्हें उसने पिछले दृष्टांत में शैतान की दुष्ट आत्माओं का प्रतीक बताया था – मत्ती 13:4,19), आकर पेड़ की डालियों पर बैठ जाते है। लेकिन अगर आपने सिर्फ़ शिष्य बनाने पर ही ज़ोर दिया होता, तो आपकी कलीसिया आकार में छोटी होती, लेकिन वह शैतानी प्रभाव से – और उस प्रभाव के साथ आने वाली समस्याओं से, मुक्त रहती और ज़्यादा शुद्ध होती!

मत्ती 13:33 में यीशु ने स्वर्ग के राज्य की तुलना ख़मीर से की। यह स्थानीय कलीसिया में भ्रष्टाचार के फैलने के बारे में एक भविष्यवाणी है। बार बार यीशु ने कलीसिया के सामने आने वाले खतरों के बारे में बताया – बुरी भूमि, जंगली बीज, कलीसिया के अंदर बैठी दुष्ट आत्माएँ और खमीर। अगर मसीही अगुवो ने इन दृष्टांतों पर ध्यान दिया होता, तो वे अपनी कलीसियाओं को आत्मिक मृत्यु से बचा पाते – और तब उन्होंने शिष्य बनाने पर ज़ोर दिया होता।

मत्ती 13:44 में यीशु ने कहा कि स्वर्ग का राज्य एक ऐसे व्यक्ति की तरह है जिसने एक खेत में छिपे हुए ख़ज़ाने को पाया। उस मनुष्य ने अपना सब कुछ बेच कर उस खेत को मोल ले लिया। यह एक ऐसे व्यक्ति की तस्वीर है, जो यीशु का शिष्य बनने के लिए वह सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार है जो उसके लिए मूल्यवान है, जिससे कि वह परमेश्वर का राज्य पा सके।

यीशु ने दूसरे दृष्टांत में इसी सत्य पर ज़ोर देते हुए एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताया जिसने अपना सब कुछ बेच कर एक बहुत क़ीमती मोती ख़रीदा (मत्ती 13:45)। दोनों ही दृष्टांतों में यह अभिव्यक्ति ध्यान देने योग्य हैं – “जो कुछ उसके पास था”। यीशु ने कहा, “तुममें से कोई भी तब तक मेरा चेला नहीं बन सकता जब तक कि वह अपना सब कुछ त्याग न दे” (लुका 14:33)। शिष्य बनने और स्वर्ग का राज्य पाने का सिर्फ़ यही एक तरीक़ा है।

मत्ती 13:47-50 में यीशु ने पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य की बाहरी अभिव्यक्ति के बारे में बात करते हुए कहा कि उसमें दो तरह की मछलियां है – अच्छी और बुरी। लेकिन युग के अंत में स्वर्गदूत आएंगे और वे धर्मियों को अधर्मियों से अलग कर देंगे।