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आने वाले दिनों में क्योंकि आपके लिए परमेश्वर के पास एक सेवकाई है, तो आप हमेशा नम्र व दीन रहने, किसी भी बात में कभी अपने आपको सही न ठहराने, मदद के लिए लगातार परमेश्वर को पुकारते रहने, और अपने जीवन में हरेक ढोंग-दिखावे से नफरत करते रहने द्वारा अपने आपको उस सेवकाई के लिए तैयार करें।

जो लोग धार्मिकता की खोज में रहते हैं, फरीसीवाद और आत्मिक घमंड उनके बहुत नज़दीक रहते हैं। इसलिए यह दोनों बुराईयाँ किसी खास तरह के एक समूह में नहीं पाई जातीं। ये बुराईयाँ हममें से किसी से दूर नहीं हैं। मैंने यह जाना है कि इन बुराइयों को दूसरे में देख लेना ज़्यादा आसान होता है, लेकिन स्वयं अपने अन्दर देख पाना बहुत मुश्किल होता है। इसमें दिखावा (असली बातों की नकल) ख़ास तौर पर एक ऐसी बुराई है जिसकी तरफ धार्मिक मन -मिज़ाज वाले युवक जल्दी झुक जाते हैं, और इससे उनकी आत्मिकता मर जाती है।

जिन अलग-अलग क्षेत्रों में आप संघर्ष कर रहे हैं, उनमें आपको पाप के प्रति एक "सिद्ध" मृत्यु में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़ते रहना पड़ेगा। आपको एक सतही जय से खुश नहीं होना चाहिए। हरेक अभिलाषा एक प्याज़ की तरह होती है। जो ऊपरी परत आपको अभी नज़र आ रही है, उसके नीचे और भी बहुत से परतें होती हैं। जब तक आपको नज़र आने वाली परत से आप उग्रता से नहीं निपटेंगे, तब तक आप उसके नीचे मौजूद परत तक नहीं पहुँच पाएंगे।

पवित्र किया जाना यीशु के समान बनने के लिए एक जीवन-भर चलने वाली प्रक्रिया है - जैसे लड़कियों की तरफ ऐसे देखना जैसे यीशु देखता था, धन और भौतिक वस्तुओं की तरफ ऐसे देखना जैसे यीशु देखता था, अपने शत्रुओं की तरफ ऐसे देखना जैसे वह देखता था, आदि। यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसे पूरे करने में पूरा जीवन बीत जाता है। लेकिन आपको इसकी तरफ बढ़ते रहना है। "सिद्धता की तरफ बढ़ते जाना" (इब्रा. 6:1), "हरेक जो यीशु की तरह होना चाहता है, वह अपने आपको वैसा ही पवित्र करता है जैसा वह पवित्र है" (1 यूहन्ना 3:3), "जो बातें पीछे रह गई हैं उन्हें भूलकर आगे की ओर बढ़ता जाता हूँ कि वह ईनाम पाऊँ जिसके लिए परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में मुझे ऊपर बुलाया है" (फिल. 3:13,14) जैसे पदों का यही अर्थ है। अगर आप इस युद्ध के मैदान में से हट जाएंगे, तो शत्रु प्रबल होने लगेगा। दूसरी तरफ, जैसा 1 पतरस 4:12 में लिखा है, अगर आप गुप्त रूप में "अपनी देह में पीड़ा सहते रहेंगे" (अपने आपको मौत के हवाले करते रहेंगे), तो आप पाप करना छोड़ देंगे।

ऐसा कभी न सोचें कि जैसी परीक्षाओं में से आपको गुज़रना पड़ रहा है, वैसी परीक्षाओं का सामना कोई नहीं कर रहा है। शैतान आपको कभी ऐसे झूट के धोखे में न डालने पाए, क्योंकि तब आप निरुत्साहित हो जाएंगे।

1 कुरिन्थियों 10:13 कहता है, "आपको जिस किसी बात में परखे जाने का अनुभव होता है, उसका सामना एक सामान्य रूप में सभी लोगों को करना पड़ता है। लेकिन परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करता है, और वह आपकी जय पाने की ताकत से ज़्यादा परीक्षा में आपको नहीं पड़ने देगा; लेकिन जिस समय आप प्रलोभित किए जाएंगे, वह आपको जय पाने की सामर्थ्य (अनुग्रह) देगा, और इस तरह आपको बच निकलने देगा। कोई परीक्षा ऐसी नहीं होती जिसका सामना न किया जा सकते हो" (गुड न्यूज़ और लिविंग बाइबल अनुवाद)।

सभी मनुष्य मूल रूप में एक ही तरह परखे जाते हैं कि वे उनकी अपनी - इच्छा पूरी करें। पाप एक बड़ा वृत्ताकार घेरा होता है जिसमें बहुत से अलग-अलग खण्ड होते हैं। लेकिन हरेक परीक्षा / प्रलोभन मूल रूप में एक ही है - परमेश्वर की इच्छा नहीं अपनी इच्छा पूरी करना - चाहे वह झूठ बोलना हो, क्रोध करना हो, किसी से घृणा करना हो, कुड़कुड़ाना हो, व्यभिचार करना हो, या कोई दूसरा पाप हो । यीशु को भी उसकी अपनी इच्छा पूरी करने के लिए प्रलोभित किया गया था। लेकिन परमेश्वर को मदद के लिए पुकारते हुए उसने उस परीक्षा पर जय पाई थी (इब्रानियों 5:7), और इस वजह से ही उसने कभी पाप नहीं किया था (यूहन्ना 6:38 )। अब हम सभी उसके उदाहरण का अनुसरण कर सकते हैं।

इसलिए अलग-अलग पापों को ऐसे अलग-अलग मामले न समझें जिनका एक-दूसरे से कोई सम्बंध नहीं होता। कुछ लोग एक क्षेत्र में ज़्यादा परखे जाते हैं, और कुछ किसी दूसरे क्षेत्र में ज़्यादा परखे जाते हैं। लेकिन हरेक मामले में, पाप करना एक व्यक्ति का अपनी इच्छा पूरी करना ही होता है। परमेश्वर से आपकी मदद करने के लिए कहें, और तब पवित्र आत्मा आपके शरीर (स्वेच्छा) को मृत्यु के हवाले करने में आपकी मदद करेगा (देखें रोमियों 8:13 और गलातियों 5:24 )।

यीशु के प्रति एक उत्साहपूर्ण भक्ति ही आपको हर समय जय पाने और सही मार्ग पर चलने में मदद करेगी। आप हर समय यह कहने योग्य होने चाहिए, “इस पृथ्वी पर मैं तुझे छोड़ और कुछ (या किसी को) नहीं चाहता" (भज. 73:25)। यीशु के लिए प्रेम में ऐसी सामर्थ्य होती है कि फिर वह आपके हृदय में से बाकी सारे अनुरागों (और अभिलाषाओं) को निकाल देता है। आपको ऐसा कहने वाला होना चाहिए, "मैंने प्रभु को हमेशा अपने सम्मुख रखा है" (कि मैं पाप करने से डरता हूँ - जैसा युसुफ ने कहा था); और वह हमेशा मेरे दाहिने हाथ पर रहता है (कि मुझे पाप न करने के लिए अनुग्रह दे)" (भज. 16:8)। यह लगातार विजयी जीवन बिताने का रहस्य है।