द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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लूका 10: 42 में मार्था के लिए यीशु के शब्द कितने ध्यान देने वाले हैं: "एक बात की आवश्यकता है!" सम्भव है बहुत से ऐसे अच्छे कार्य जो आवश्यक हो। लेकिन, यीशु ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि अन्य सभी बातों की अपेक्षा एक बात अवश्य है। वह एक बात क्या थी?

यीशु और उसके शिष्य बैतनिय्याह पहुंचे थे। जैसे ही मार्था ने उन्हें देखा, उसने शीघ्र ही आनंद पूर्वक अपने घर में उन्हें ग्रहण किया, उसने उन्हें बैठाया और तुरंत भोजन की व्यवस्था में जुट गई। इस बीच यीशु ने उपस्थित लोगों को उपदेश देना शुरू किया। यह जानकर कि उसकी बहन मरियम यीशु के वचनों को सुनने में मगन बैठी है और कुछ सहायता नहीं कर रही है, वह क्रोधित हो गई। और उसने यीशु की ओर मुड़कर मानो इसी शब्दों में याचना की, "प्रभु, यहाँ मैं आप सभी के लिए भोजन तैयार करने में कड़ी मेहनत कर रही हूँ और मेरी बहन यहाँ कुछ भी काम न किए बिना बैठी है। उससे कहो कि उठे और मेरी मदद करे!" हालाँकि उसके आश्चर्य के लिए, मार्था को यीशु ने डाँटा। यीशु ने बताया कि मार्था ग़लत है, मरियम नहीं।

यहाँ हम ध्यान दे कि मार्था ने ऐसा कोई पापपूर्ण कार्य नहीं किया था, जिसके लिए उसे प्रभु की डाँट मिली। उसने खुशी-खुशी यीशु को अपने घर में स्वागत किया था। फिर रसोई में जो काम उसने किया वह खुद के लिए नहीं था, बल्कि यीशु के लिए और उसके शिष्यों के लिए था। मार्था आज के एक विश्वासी की तस्वीर है, जिसने अपने हृदय में प्रभु को ग्रहण किया है और जो निःस्वार्थ रूप से प्रभु और दूसरों की सेवा करने में व्यस्त है। फिर भी उसके उत्साह के बावजूद यीशु ने उसे डांटा। हम पूछते है कि इसका अभिप्राय क्या है? उसके कार्य में क्या गलती थी? और निश्चयत: प्रभु यीशु के इन चार शब्दों में उत्तर छिपा है: "एक बात आवश्यक है।" मार्था को उसकी सेवा के लिए डाँट नहीं सुननी पड़ी, किंतु इसलिए कि उसने प्राथमिक बातों को प्रथम महत्व नहीं दिया।

प्रभु ने कहा कि मरियम ने अच्छा भाग चुना है। वह क्या था? वह यीशु के कदमों पर बैठकर उसका वचन मगन होकर सुन रही थी, और कुछ नहीं। लेकिन यही उत्तम भाग है। अन्य सभी बातों से अधिक यही एक बात अवश्य है। हमारे जीवनों में उसकी बात सुनने का कितना स्थान है? हम प्रतिदिन कितना समय देते हैं कि प्रभु के कदमों पर बैठ उसके वचन पढ़े और उसकी आवाज़ सुने? संभवतः अधिक नहीं। हम दूसरे कार्यों में लग जाते हैं, अतः मार्था के समान गलती करने में स्वयं को दोषी पाते हैं। संभव है कि हम सांसारिक कार्यों में ही संलग्न नहीं रहते। हम मसीह सेवकाई में भी वयस्त रह सकते हैं। हम प्रार्थना, आराधना अथवा साक्षी में सक्रिय भाग ले सकते हैं, तो भी मार्था के समान प्रभु की फटकार सुन सकते हैं।

मरियम के प्रभु यीशु के चरणों में बैठने से हम कम से कम तीन आत्मिक सत्य सीख सकते हैं।

1. बैठना - चलने, दौड़ने, या खड़े होने के विपरीत - मुख्य रूप से यह विश्राम की तस्वीर है। यह हमें सिखाता है कि हमारे हृदयों को विश्राम और हमारे मनों को शांत स्थिति में रहना चाहिए, इससे पहले कि हम परमेश्वर को हमसे बात करते सुन सके। यदि हमने पापों का अंगीकार न किया हो तो उनसे हमारा हृदय व्याकुल रहेगा। उसी प्रकार इस संसार की चिंताओं और वैभव में लिप्त रहने से हमारा मन सदैव अशांत रहेगा। अशांत विवेक तथा चिंता एवं भयग्रस्त मन से, हम परमेश्वर की “दबी धीमी आवाज़” सुनने की आशा कैसे रख सकते है? भजन 46:10 में लिखा है कि परमेश्वर को जानने के लिए हमें उसके सम्मुख चुप हो जाना है।

2. किसी व्यक्ति के कदमों पर बैठना, नम्रता की भी तस्वीर है। मरियम कुर्सी पर अथवा यीशु के समान ऊँचाई पर नहीं बैठी थी, पर नीचे बैठी थी। परमेश्वर कभी न्याय के समय को छोड़, घमंडी व्यक्ति से बातें नहीं करता। परंतु वह बालक समान नम्र व्यक्ति से बातें करने तथा उसे अपना अनुग्रह प्रदान करने को सदैव तैयार है।

3. मरियम के समान बैठना अधीनता की तस्वीर है। ऐसा व्यवहार किसी शिष्य का उसके गुरु की उपस्थिति में होता है। परमेश्वर सिर्फ़ हमारी उत्सुकता को शांत करने अथवा हमें सूचना देने के लिए हमसे बात नहीं करता। परमेश्वर का वचन उसके हृदय की अभिलाषा को प्रगट करता है। वह इसलिए बातें करता है कि हम उसकी आज्ञा माने। यूहन्ना 1:17 के अनुसार यीशु ने स्पष्ट कहा कि जब हम परमेश्वर की इच्छा पूर्ण करने के इच्छुक होंगे, तभी उसकी इच्छा हम पर व्यक्त होगी।

कई मसीही महीनों और वर्षों तक परमेश्वर की आवाज़ को सुनने की चाहत बिना ही बाइबल पढ़ते रहते हैं। ऐसा करने में फिर भी वे काफी संतुष्ट लगते है। मैं आपसे पूछता हूं, क्या आप हर दिन परमेश्वर की आवाज सुनते हैं? यदि नहीं, तो इसका कारण क्या है? वह सुनने वालों से बात करता है। वह क्या है जो आपके आत्मिक कानों को सुनने से रोक रहा है? क्या यह परमेश्वर के सामने शांत उपस्थित रहने की कमी है, या आत्मा की नम्रता की कमी है, या जो उसने पहले ही आपसे कहा है उसके प्रति आज्ञाकारिता की कमी है? या क्या आपमें सुनने की इच्छा की कमी है? कोई भी कारण क्यों न हो, परमेश्वर करें कि उसका उपचार तत्काल हमेशा के लिए हो। शमुएल की प्रार्थना कीजिए, “हे यहोवा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है”। इसके उपरांत अपनी बाइबल खोलिए और परमेश्वर का मुख खोजिए, तब आप भी उसकी वाणी सुनेंगे।