द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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जन ३ दाऊद द्वारा उस समय लिखा गया जब उसके पुत्र अबसालोम ने उसे बेदखल कर दिया था और उसे यरूशलेम से भाग जाना पड़ा। वह यहां पर परमेश्वर में अपना भरोसा व्यक्त करता है। वह कहता है, ''हे यहोवा, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तक का ऊंचा करनेवाला है'' (भजन ३:३)। हम सामान्य तौर पर आरामदायक गिरजाघर की इमारत में बैठकर इस पद को गाते हैं। दाऊद जब अबसालोम से अपना प्राण बचाने के लिए भाग रहा था, तब उसने यह भजन गाया!! इनमें से अधिकतर भजन दाऊद द्वारा उस समय लिखे गए थे जब वह राजमहल में नहीं था, परंतुउस समय लिखे जग वह तनाव में था और एक गुफा से दूसरी गुफा में भागता फिर रहा था। यदि दाऊद ने तनाव का सामना न किया होता, तब इनमें से कई भजन लिखे न गए होते। तनाव के समय में परमेश्वर हमें कुछ अच्छे सबक सिखाता है। तनाव के द्वारा ही परमेश्वर हमें दूसरों के लिए आशीष का कारण बनाता है। जब टूथेपस्ट की ट्यूब को दबाया जाता है, तब पेस्ट बाहर आता है। परमेश्वर भी हमें हमारे शत्रुओं द्वारा निचोड़ता है, ताकि उसका वचन हममें से बाहर निकल आए। जितना ज़्यादा तनाव होगा उतनी ही अधिक संपन्न हमारी सेवकाई होगी।

भजन २२ प्रार्थना और स्तुति के साथ मसीह का भजन है। यहां पर १ ला वचन प्रभु यीशु द्वारा क्रूस पर कहे गए वचन हैं, ''मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों त्यागा?'' क्रूस पर यीशु कीड़े के समान बन गया, पानी के समान बहाया गया (भजन २२:६,१४)। कुत्तों ने उसे घेर लिया था और उन्होंने उसके वस्त्र आपस में बांट लिए (भजन २२:१६,१८)। परंतु हम भजन २२:२२ में हम पुन्रुत्थान के निकट आते हैं, ''मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का प्रचार करूंगा।'' यीशु ने अपने चेलों को प्रत्यक्ष रूप से अपने भाई पहली बार पुन्रुत्थान के दिन कहा (यूहन्ना २०:१७)। इस संदर्भ में यह पद इब्रानियों २:१२ में बताया गया है। उसमें आगे लिखा गया है, '' सभा के बीच मैं तेरी प्रशसा करूंगा। हे यहोवा के डरवैयो, उसकी स्तुति करो!'' (भजन २२:१६,१८)। यीशु कलीसिया में परमेश्वर की स्तुति करने में हमारी अगुवाई करता है। जो लोग परमेश्वर का भय मानते हैं केवल उन्हीं को परेश्वर की स्तुति करने हेतु प्रोत्साहित किया गया है, क्योंकि केवल उन्हीं की स्तुति खरी होगी। हम भजन २२:२२-३० में क्रूस और पुन्रुत्थान के कार्य के परिणामों को देखते हैं। यहां पर परमेश्वर की स्तुति के तीन पद हैं (भजन २२:२२,२३,२६) और परमेश्वर की आराधना के विषय पर दो पद (२७,२८), जिसके बाद सेवा पर आधारित एक पद है (पद ३०)। इस प्रकार स्तुति और स्तुति और स्तुति के बाद आराधना है, और आराधना के बाद सेवा। कितने कम लोगों ने प्रभावी सेवा की तैयारी के रूप स्तुति और आराधना के महत्व को समझा है!

भजन २५ मार्गदर्शन और सुरक्षा के विषय में भजन है। दाऊद की प्रार्थना थी, ''हे यहोवा, अपने मार्ग मुझको दिखा; अपना पथ मुझे बता दे'' (भजन २५:४)। मार्गदर्शन की प्रतिज्ञा उनसे की गई है जो कबूल करते हैं कि वे पापी हैं (भजन २५:८), जो खुद को दीन बनाते हैं (भजन २५:९), जो उसकी साक्षी को मानते हैं (भजन २५:१०), जो परमेश्वर का भय रखतेहैं (भजन २५:१२), और जो उसकी ओर निहारते हैं (भजन २५:१५)। परमेश्वर उन लोगों पर अपने गुप्त भेद को प्रगट करता है जो उसका आदरयुक्त भय रखते हैं (भजन २५:१४)।

भजन २७ परमेश्वर में निर्भय भरोसे का भजन है। यहां पर दाऊद घोषणा करता है, ''चाहे सेना भी मेरे विरुद्ध छावनी डाले'' तौभी वह न डरेगा, क्योंकि परमेश्वर उसकी सुरक्षा है (भजन २७:४)। दाऊद ने प्रभु से केवल एक ही बात की इच्छा की - प्रभु की मनोहरता को देखना और हर समय परमेश्वर के मंदिर में वास करना (भजन २७:४)। हमें भी केवल इसी बात की चाह रखना है।

भजन ३४ प्रभु का वर्णन धर्मी के सहायक के रूप में करता है। दाऊद ने यह भजन तब लिखा जब प्रभु ने उसे मृत्यु से छुड़ाया, जब उसने राजा अबिमेलेक के सामने पागल होने का नाटक किया। इसलिए वह कहता है, ''मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करुंगा; इस दीन जन ने पुकार तब यहोवा ने सुन लिया, परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है!'' (भजन ३४:१,६,८)। दाऊद ने पहचान लिया कि ''यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है'' (भजन ३४:७)। उसने देखा कि ''यहावे की आख् धमिर्यों पर लगी रहती हैं आरै उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं'' और यह कि ''यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है'' (भजन ३४:१५,१८)। दाऊद अपने अनुभव से आगे कहता है, ''धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो है'' (भजन ३४:१९)। कभी यह न सोचें कि यदि आप धर्मी हैं, तो आपके जीवन में समस्याएं न होगी। आपके जीवन में अधिक समस्याएं होंगी, ''परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है'' (भजन ३४:१९)। उसके बाद मसीह के विषय में एक और भविष्यद्वाणी है : ''वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन मे से एक भी टूटने नहीं पाती'' (भजन ३४:२०) - जो कि क्रूस पर पूरी हो गई।

भजन १०१ में दाऊद उस निर्दोष चालचलन के विषय में लिखता है जिसमें उसने जीवन बिताना चाहा ''मैं बुद्धिमानी से खरे मार्ग में चलूंगा। तू मेरे पास कब आएगा'' (भजन १०१:२)। हम सब यह कहने पाएं। सबसे पहले हमें अपने घरों में निर्दोष चाल चलना है। निर्दोष होने का मतलब हम कभी गलती करेंगे नहीं, ऐसा नहीं है। इसका मतलब है कि जब हम गलती करते हैं, तब हमें क्षमा मांगना है और सारी बातों को ठीक कर देना है। हमें अपने आर्थिक लेनदेन में भी निर्दोष रहना है।