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जब गिदोन ने इस्राएल के शत्रुओं से युद्ध करने के लिए सेना को एकत्रित किया, तब उसके पास 32,000 पुरुष थे। परन्तु परमेश्वर जानता था कि वे सभी संम्पूर्ण हृदय से उसके साथ नहीं थे। इसलिए परमेश्वर ने छांट कर उनकी संख्या को घटा दी। डरपोकों को सबसे पहले घर भेजा गया। परन्तु 10,000 फिर भी बाकी रह गये थे। इनको सोते के पास ले जाया गया और परखा गया। उनमें से केवल 300 परखे जाने में सफल हुए और परमेश्वर के द्वारा स्वीकृति को प्राप्त किया (न्यायियों 7:1-8)

अपनी प्यास को बुझाने के लिए जिस प्रकार उन 10,000 लोगों ने सोते से पानी पिया वह यह जाँचने का परमेश्वर का तरीका था कि कौन गिदोन की सेना में चुने जाने के योग्य है। थोड़े ही इस बात को महसूस कर पाये कि उनकी परीक्षा हो रही है। उनमें से 9700 जिन्होंने घुटने टेक कर अपनी प्यास को बुझाया, वे शत्रु के विषय में भूल गए। उनमें से केवल 300 लोगों ने ही अपने पैरों पर खड़े रह कर सावधानी-पूवर्क अपने हाथों से पानी पिया।

परमेश्वर हमें जीवन की साधारण बातों में परखता है - जैसे धन के प्रति हमारा व्यवहार, सुख-विलास में, संसार के सम्मान में और आराम आदि विषयों में। गिदोन की सेना के समान बहुत बार हम भी यह समझ नहीं पाते कि परमेश्वर हमें परख रहा है।

यीशु ने हमें संसार की चिन्ताओं के बोझ तले न दबने के प्रति सावधान किया है। उसने कहा, “इसलिए सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार, और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाँए, और वह दिन तुम पर फन्दे के समान अचानक आ पड़े” (लूका 21:34)

पौलुस कुरिन्थियों की कलीसिया को यह कहते हुए उपदेश देता है, "हे भाईयो, मैं यह कहता हूँ कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिन के पत्नी हों, वे ऐसे हों, मानो उन के पत्नी नहीं; और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले ऐसे हों, मानो उनके पास कुछ है ही नहीं। और इस संसार के साथ व्यवहार करनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हों लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं। मैं यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ कि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।" (1 कुरिन्थियों 7:29–35)

हमें इस संसार की किसी भी वस्तु को परमेश्वर के प्रति हमारे समर्पण को भंग करने नहीं देना चाहिए। संसार की उचित दिखने वाली वस्तुएँ पापपूर्ण वस्तुओं के मुकाबले ज्यादा फंसाने वाली होती हैं - क्योंकि उचित वस्तुएँ बहुत ही निर्दोष और हानिरहित नज़र आती हैं !!

हम अपनी प्यास को संतुष्ट कर सकते हैं - परन्तु हमें अपने हाथों को चुल्लु बना कर कम से कम जितनी आवश्यकता हो उतना ही पीना होगा। हमारा मन आत्मिक बातों की ओर हो और न कि संसार की बातों पर। यदि हमें यीशु का चेला बनना है तो हमें सब कुछ त्यागना होगा। जिस प्रकार एक रबरबैंड को खिंचा जाता है, उसी प्रकार हमारा मन भी संसार के आवश्यक कामों पर लगाया जा सकता है। परन्तु एक बार जब वह कार्य समाप्त हो जाता है तो जिस प्रकार एक खिंचे हुए रबरबैंड को छोड़ने पर वह सिकुड़कर अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाता है, हमारा मन भी सिकुड़कर परमेश्वर और अनंतकाल की बातों पर वापस आ जाना चाहिए। यही वह बात है जिसका अर्थ है "पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ” (कुलुस्सियों 3:2) । बहुत से विश्वासियों के साथ रबरबैंड की स्थिति विपरीत प्रकार से काम करती है। उनका मन कभी कभी खिंचकर अनंतकाल की बातों के विषय में सोचता है और जब उसको छोड़ा जाता है तब वे वापस संसारिकता से जकड़े हुए अपने समान्य तरीके पर आ जाते हैं!