द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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हम पाते है कि 1 राजा की पुस्तक का आरम्भ दाऊद से होता है, वह व्यक्ति जो परमेश्वर के मन के अनुसार था, और इस पुस्तक का अंत अहाब से होता है, जो इस्राएल पर राज करने वाला सबसे दुष्ट राजा था। इस्राएल का आरम्भ एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में होता है, और उसका अंत एक विभाजित राष्ट्र के रूप में होता है जिसमें दोनों ही राज्यों में दुष्ट राजाओं ने राज किया – ख़ास तौर पर इस्राएल में।

परमेश्वर के लोगों की दशा बहुत हद तक उनके अगुवों की आत्मिकता या उसकी कमी पर निर्भर रहती है। इस्राएल में जब भी एक ईश्वरीय अगुवा हुआ, तो वे ईश्वरीय मार्गों में बढ़े। और जब भी उनका शारीरिक अगुवा हुआ, वे परमेश्वर से दूर होकर शारीरिक दशा में पहुँचे थे। परमेश्वर के लोगों में हमेशा सबसे बड़ी ज़रूरत ईश्वरीय अगुवों की ही रही है।

अपने समय में यीशु ने लोगों पर नज़र डाली और यह देखा कि वे बिना चरवाहों की भेड़ें थी। उसने अपने शिष्यों से कहा कि वे परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपने लोगों के बीच में चरवाहे भेजे (मत्ती 9:36-38)। आज परमेश्वर जब उसकी कलिसियाओं को देखता है, तो उसमें वह ईश्वरीय अगुवों की उसी ज़रूरत को पाता है। इसलिए जो चुनौती इस पीढ़ी में हमारे सामने रखी है वह यही है कि हम परमेश्वर द्वारा खोजे जा रहें ऐसे स्त्री व पुरुष बने जो उसके हृदय को संतुष्ट कर सकें।

परमेश्वर को हरेक पीढ़ी में ईश्वरीय अगुवों की ज़रूरत होती है। हम पिछली पीढ़ी के अगुवों की बुद्धि पर निर्भर नहीं रह सकते। दाऊद इस्राएल पर हमेशा के लिए राज नहीं कर सकता था। उसके मरने के बाद किसी दूसरे को उसकी जगह शासन संभालन था। इस्राएल का क्या होने वाला था, यह इस पर निर्भर था कि अगला राजा किस तरह का व्यक्ति होगा।

परमेश्वर एक पीढ़ी में कार्य करने के लिए एक ईश्वरीय व्यक्ति को खड़ा करता है। फिर वह बूढ़ा होता है और मर जाता है। तब क्या अगली पीढ़ी के अगुवों के पास सिर्फ़ संस्थापक का ज्ञान और उसके धर्म-सिद्धांत ही होंगे लेकिन उसकी ईश्वरीयता और परमेश्वर के विषय का सत्य-ज्ञान नहीं? फिर तो वे लोग निश्चय ही भटक जाएंगे। हमारे समय में, परमेश्वर को बहुत से “दाऊदो” और बहुत सी “दबोराओ” की ज़रूरत है।