द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
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वाक्य 1:10-11 में हम देखते हैं कि यूहन्ना ने एक आवाज़ को यह कहते हुए सुना, "जो कुछ तू देखता है, उसे पुस्तक में लिखकर सातों कलीसियाओं के पास भेज दे, अर्थात् इफिसुस और स्मुरना, और पिरगमुन, और थूआतीरा, और सरदीस और फिलदिलफिया, और लौदीकिया में।" परमेश्वर हमें न केवल खुद के लिए, परंतु दूसरों के लिए भी संदेश देता है। जब परमेश्वर हमसे बातें करता है, तब उसे लिख लेना अच्छी बात है, जैसा कि यहां पर यूहन्ना को आज्ञा दी गई है (प्र. वाक्य 1:11)। अन्यथा वह भूल गया होता कि परमेश्वर ने उससे क्या कहा है। यह संदेश आशिया की सात कलीसिया के लिए था। उन दिनों में जिसे आशिया कहा जाता था, वह टर्की का एक भाग था।ये सातों कलीसिया 75 मील के दायरे में थीं। परंतु ध्यान दें कि यद्यपि वे एक दूसरे के नज़दीक थीं, फिर भी उन्हें "आशिया की कलीसिया" नहीं कहा गया। यह छोटी सी बात है, परंतु अत्यंत महत्वपूर्ण है। "आशिया की कलीसिया" का मतलब हुआ होता, ये कलीसिया फिरकों में बदल गई हैं जिनका मुख्यालय एक है। परंतु आशिया की कलीसिया यह दर्शाती है कि हर कलीसिया स्थानीय कलीसिया थी जो प्रत्यक्ष प्रभु यीशु की अधीनता में थी।

कलीसिया परमेश्वर का कार्य है, जिसे मसीह ने बनाया है। परंतु फिरके मनुष्यों का कार्य है। प्रेरितों की सारी शिक्षा और लेख इस बात को स्पष्ट करते हैं कि हर कलीसिया के लिए परमेश्वर की इच्छा यह है कि हर एक कलीसिया को सीधे प्रभु यीशु की अधीनता में रहना है, न कि किसी फिरके का हिस्से बनना है। इन सात कलीसियाओं का कोई बिशप या पर्यवेक्षक नहीं था, जिन्हें यूहन्ना यह पत्र भेजता है कि उन्हें इन सात कलीसियाओं को दिया जाए। प्रभु ने कलीसिया को प्रेरित दिए थे, और यूहन्ना उनमें से एक था। परंतु प्रभु ने कोई बिशप या पर्यवेक्षक को नियुक्त नहीं किया था। ऐसी कोई बात नहीं थी, उदाहरण के लिए जैसे, 'भारत की कलीसिया'। भारत देश में कलीसियाएं हैं और प्रभु ने उन्हें भिन्न भिन्न स्थानों में तैयार किया है, और हर एक सीधे उसी की अधीनता में है।

शैतान का अंति लक्ष्य नकली विश्व 'कलीसिया' बेबीलोन का निर्माण करना है। इस लक्ष्य की ओर उसका पहला कदम यह था कि कई सदियों पहले सामुहिक कलीसियाओं को फिरकों में बांध देना। वह जानता था कि अन्यथा बेबीलोन के निर्माण का कार्य असंभव होगा। हमें शैतान की युक्तियों से अनजान नहीं रहना है।

सोने के सात दीवट सात कलीसियाओं को दर्शाते हैं (प्र. वाक्य 1:20)। पुराने नियम में मंदिर में एक सात शाखाओ वाला दीवट था। इसका कारण यह था कि इस्राएल के सारे गोत्र "एक ही डिनॉमिनेशन" की शाखाएं थीं जिसके मुख्यालगय और अगुवे यरूशलेम में थे।

परंतु नए नियम में यह बात अलग है। यहां सात अलग अलग दीवट हैं, हर एक दीवट दूसरे से अलग है। कारण, जैसा कि हमने ऊपर देखा, यह था कि हर कलीसिया स्वतंत्र रूप से मसीह के अधिकार के अधीन थी, हालांकि मसीह के द्वारा एक दूसरे के साथ संगति में थी।

कलीसिया को दीवट इसलिए कहा गया है, क्योंकि उसका मुख्य कार्य रोशनी देना है। यह सोने का दीवट इसलिए है क्योंकि कलीसिया का उद्गम परमेश्वर की ओर से है। इसे परमेश्वर ने बनाया है, मनुष्य ने नहीं।

दीवट मात्र सजावट के लिए नहीं है। न ही कलीसिया सजवाट के लिए है! जो प्रकाश हर एक कलीसिया को फैलाना है, वह है परमेश्वर का वचन, केवल वही इस अन्धकारभरे संसार में हमारे मार्गों के लिए रोशनी है (भजन 119:105)। उस रोशनी को चमकाने के बजाय जब कलीसिया स्कूल और अस्पताल चलाने और सामाजिक कार्यों को अधिक महत्व देती हैं, तब हम यकीन के साथ जान सकते हैं कि वे परमेश्वर के मुख्य उद्देश्य से दूर हो गए हैं।

जब यूहन्ना ने पीछे मुड़कर देखा कि कौन बोल रहा है, तब उसने यीशु को देखा (प्र. वाक्य 1:12,13)। परंतु उसने उसे कलीसियाओं के मध्य में देखा। स्थानीय कलीसिया के द्वारा परमेश्वर खुद को प्रगट करना चाहता है और दूसरों से बातें करता है।

बाइबल में परमेश्वर के जिस पहले निवास का उल्लेख आया है, वह है जलती झाड़ी जिसे मूसा ने जंगल में देखा (व्यवस्था विवरण 33:16)। पतमूस में यूहन्ना के समान, मूसा ने पीछे मुड़कर देखा कि वह अद्भुत दृश्य क्या है। और तब परमेश्वर ने उससे बातें की (निर्गमन 3:3)।

आज परमेश्वर की कलीसिया परमेश्वर का निवास स्थान है। परमेश्वर चाहता है कि हर कलीसिया जलती झाड़ी के समान उसकी आत्मा से प्रज्वलित हो। जब लोग स्थानीय कलीसिया की ओर देखें, तब वे मसीह के जीवन को उस कलीसिया के सदस्यों के माध्यम से प्रकाशित होते हुए देखेंगे। तब परमेश्वर उस कलीसिया के माध्यम से लोगों से बात कर सकता है।