द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया मूलभूत सत्य
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परमेश्वर के नजरिए में इस जगत में जो अंतिम है, उसकी नज़र में के प्रथम है। यह एक अद्भुत सत्य है जो यीशु के दृष्टांतों में से सात दृष्टान्तों में नज़र आता है:

1. मत्ती 20: 1 में वे मजदूर जो ग्यारवे घण्टे में आए थे (12 में से 11वें घण्टे में), उन्हें पहले प्रतिफल दिया गया था।

2. लूका 15:22 में छोटा पुत्र जिसने अपने पिता की सम्पति का आधा भाग (अपना हिस्सा) बर्बाद कर दिया था और अपने पिता के नाम को बदनाम किया था, फिर भी "सबसे अच्छा" वस्त्र और "अंगूठी” पाता है- ऐसी दो वस्तुएँ जो बड़े भाई को नहीं मिली।

3. लूका 7:41 में वह जिसने ज्यादा पाप किए थे (और जिसके ज्यादा पाप क्षमा हुए थे) अंततः उसने ज्यादा प्रेम किया (और इस तरह प्रभु की ज्यादा नजदीकी हासिल की।

4. मत्ती 21:28 में वह पुत्र जिसने पहले विद्रोह किया था, उसने ही अंततः अपने पिता की इच्छा पूरी की, जो उसके भाई ने नहीं की थी।

5. लूका 15:3 में: खोई हुई भेड़ दूसरी भेड़ों की तुलना में चरवाहे के ज़्यादा नज़दीक पाई गई - जिसे चरवाहा उसके कंधों पर उठाए हुए था।

6. लूका 14:10 में: विवाह के भोज में जो सबसे पीछे जा बैठा था, उसे आगे सबसे मुख्य जगह में बैठाया गया।

7. लूका 18:9 में: बेईमान चुँगी लेने वाला जो बाहरी तौर पर उस फरीसी से बहुत ज़्यादा बुरा था, उससे बेहतर साबित हुआ- क्योंकि परमेश्वर ने उसे धर्मी घोषित किया था।

ये सभी दृष्टान्त एक ही संदेश प्रस्तुत करते हैं: कि अनेक लोग जिनकी शुरूआत ख़राब होती है अंत में वही लोग पुरस्कार पाते हैं।

यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि हम दौड़ शुरू कैसे करते हैं, बल्कि यह कि हम दौड़ पूरी कैसे करते हैं। वे लोग जो हतोत्साहित नहीं होते, और जो अपने जीवनों की ख़राब शुरूआत के लिए स्वयं को दोषी नहीं ठहराते (जैसे पौलुस), उन लोगों से आगे निकल जाएँगे जिनकी शुरूआत अच्छी हुई थी। इस बात से ऐसे सभी लोग उत्साहित हो सकते हैं जिन्होंने अपने जीवनों को बर्बाद कर लिया है, कि वे निराश होकर हार न मान लें बल्कि दौड़ में आगे बढ़ते रहें।

पौलुस ने यीशु से मिलने से पहले, अपने जीवन के शुरूआती 30 साल बर्बाद कर दिए थे। लेकिन बाद में उसने सिर्फ "एक काम" करने का फैसला कर लिया था: अपनी पिछली सभी नाकामियों को भूलकर यीशु की तरह बनने के लिए आगे बढ़ते जाना, और पृथ्वी पर उसका जो थोड़ा समय बचा था, उसमें यीशु की तरह बनने के लिए सिर्फ आगे देखते रहना। इसमें उस सेवकाई को पूरा करना भी शामिल था जिसमें परमेश्वर ने उसे बुलाया था। और उसके जीवन के अंत में, उसने कहा था, “मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, और स्वर्ग में मेरे लिए मुकुट रखा हुआ है" (1 तीमुथियुस 4:7 )।

पौलुस ने कुरिंथियों के सांसारिक मसीहियों से यही कहा था कि “इस तरह दौड़ो कि पहला पुरस्कार पाओ" (1 कुरिन्थियों 9:24)।

वे सांसारिक मसीही भी अगर मन फिरा कर दृढ़ता और अनुशासन के साथ दौड़ते, तो वे मसीही दौड़ में प्रथम स्थान पा सकते थे। यही वह आशा है जो प्राचीनों के रूप में हमें नाकाम होने वाले हरेक मसीही को देनी चाहिए कि अगर वे सिर्फ मन फिरा लें, और किसी भी कीमत पर मसीह-समान बनने के निशाने की तरफ बढ़ते रहने का दृढ़ निश्चय कर लें, तो वे भी दौड़ में जीत सकते हैं।