द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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प्रकाशितवाक्य 3: 14-22 में, परमेश्वर ने लौदीकिया की कलीसिया के दूत से यह लिखने को कहा : “जो आमीन और विश्वासयोग्य और सच्चा गवाह है, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है कि मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। इसलिए कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह में से उगलने पर हूँ”

यहाँ एक कलीसिया परमेश्वर के लिए आग से भरी हुई नहीं थी। वे सिर्फ “गुनगुने” थे (प्रकाशितवाक्य 3: 16)। वे अपने धर्म-सिद्धांतो में तो पूरी तरह से सही थे – लेकिन वे सही होते हुए भी मुर्दे के समान थे! वे नैतिक रूप से सम्मानित थे लेकिन आत्मिक रुप से मृत थे!

प्रभु चाहता है कि हमारे हृदय हर समय सरगर्म रहें – उसके लिए और दूसरे विश्वासियों के लिए एक उत्साही प्रेम की गर्माहट से भरे हुए। “वेदी की आग निरंतर जलती रहें, वह कभी न बुझने पाए” (लैव्यव्यवस्था 6:13)। एक प्रतीकात्मक रूप में हम यहाँ देख सकते है कि परमेश्वर, यीशु के एक सच्चे शिष्य की सामान्य स्थिति किस रुप में देखना चाहता है। इससे कम कुछ भी उसके स्तर के अनुसार नहीं है। जब झाड़ी प्रभु की आग से जल रही थी तो कोई कीड़ा या कीटाणु उसमे जीवित नहीं रह सकता था। और इसी तरह जब हमारे हृदय पवित्र आत्मा की आग से भरे रहते है, तो उसमे कोई भी प्रेम रहित मनोभाव नहीं रह सकता।

यह एक तरीका है जिससे हम यह पता लगा सकते है कि हम ठंडे है, गर्म है या गुनगुने है: “गर्म” होना दूसरों को उत्साह से भर कर प्रेम करना है। “ठंडा” होना दूसरों के प्रति कड़वाहट से भरे हुए और क्षमा न करनेवाले होना है। “गुनगुना” होने का अर्थ दूसरों के लिए न तो प्रेम और न कड़वाहट से भरा होना हैं। जब एक विश्वासी कहता है, “मेरे हृदय में किसी के खिलाफ कुछ भी नहीं है”, तो असल में वह यह कह रहा है कि वह गुनगुना है। क्या यीशु ने यह कहा था, “जब तुम्हारे हृदय में एक दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं होगा तब सब लोग यह जान लेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो?” नहीं। दूसरों के प्रति दुष्टता का मनोभाव न होना यीशु के शिष्य होने की पहचान नहीं है (देखे यूहन्ना 13:35)। हमारे हृदयों में कुछ होना चाहिए। हममें अपने साथी विश्वासियों के लिए एक उत्साह भरा प्रेम होना चाहिए। प्रेम बुराई का न होना नहीं है बल्कि वह एक सकारात्मक गुण है।

कड़वाहट की आत्मा को हमारे हृदय में से निकाल देना और फिर उसे साफ और खाली छोड़ देना यकीनन गुनगुने होने के रास्ते पर चल देना है जो आगे जाकर पहले से भी बुरी दशा में पहुंचा देगा (लुका 11:24-26)। संसार कहता है, “कुछ न होने से तो कुछ होना अच्छा है”। अगर ऐसा है तो ठंडा होने से गुनगुना होना अच्छा है। लेकिन प्रभु यह नहीं कहता। वह कहता है, “भला होता की तू ठंडा होता” (प्रकाशितवाक्य 3:15)। वह हमें अर्ध समर्पित होने के बजाय सांसारिक देखना चाहेगा। एक गुनगुना समझौता करने वाला मसीही, एक सांसारिक अविश्वासियों की तुलना में पृथ्वी पर मसीह के उद्देश्यों को अधिक नुकसान पहुँचाता है। एक अविश्वासी मसीह का नाम नहीं लेगा। इसलिए उसकी सांसारिकता सुसमाचार के लिए कोई रुकावट नहीं हो सकती। लेकिन एक अर्ध समर्पित और समझौता करने वाला मसीही जन परमेश्वर का नाम लेता है और इसलिए वह मूर्तिपूजक और विधर्मी लोगों के बीच अपनी सांसारिकता द्वारा मसीह का नाम बदनाम करता है।

एक गुनगुने और स्व:धर्मी फरीसी की तुलना में एक ठंडे और सांसारिक अविश्वासी का उसकी आत्मिक जरूरत के विषय में जान लेना ज्यादा सहज है (देखे मत्ती 21:31)। इन सब कारणो से ही प्रभु हमें गुनगुना देखने की बजाय ठंडा ही देखने के लिए तैयार है। व्यावहारिक तौर पर इसका अर्थ यह है कि अगर आप में धन के प्रेम से, या क्रोध से, या अशुद्ध विचारों से मुक्त होने की इच्छा नहीं है (अगर हम पाप के सिर्फ इन तीन क्षेत्रो की ही बात करें), तो यही अच्छा होता कि यीशु का शिष्य कहलाने की बजाय आप एक अविश्वासी ही रहते। अगर आप गुनगुने होने की बजाय ठंडे है तो आपके लिए ज्यादा आशा हैं। यह एक अद्भुत बात है, लेकिन यह सच है।