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एक अन्य उपाय जिससे परमेश्वर हमारे बल और गर्व का तोड़ता है, वह है हमारे अगुवों द्वारा ताड़ना। लगभग सभी विश्वासियों के लिए ताड़ना ग्रहण करना बहुत मुश्किल होता है। एक दो साल के बच्चे के लिए भी ताड़ना को सहना आसान नहीं होता-ख़ास तौर पर तब जब वह सार्वजनिक रूप में दी जाए।

अंतिम बार ऐसा कब हुआ था जब आपने सार्वजनिक ताड़ना को आनन्दपूर्वक स्वीकार किया था? क्या आपने अपने जीवन में उसे एक बार भी स्वीकार किया है? अगर नहीं, तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि आपके अन्दर आत्मिक अधिकार की कमी है।

यहूदा इस्करियोती और पतरस में यह एक बड़ा फर्क था। जब पतरस ने मूर्खता-पूर्वक प्रभु को क्रूस पर चढ़ने से बचने के लिए कहा, तो प्रभु ने उसे कठोरता से डाँटते हुए कहा था, 'दूर हट, शैतान' (मत्ती 16: 23)। यीशु द्वारा किसी भी मनुष्य को दी गई यह सबसे कठोर ताड़ना थी। उसने फरीसियों को भी सिर्फ ‘साँप’ (मत्ती 3:7)। ही कहा था लेकिन पतरस को 'शैतान’ कहा गया था। यीशु की सबसे कठोर ताड़ना उसके सबसे नज़दीकी लोगों के लिए थी। वह उन्हें सबसे ज़्यादा डाँटता है जिनसे वह सबसे ज़्यादा प्यार करता है (प्रका. 3:19)।

इसके कुछ ही समय बाद, जब बहुत से विश्वासी प्रभु की शिक्षा से ठोकर खा रहे थे और उसे छोड़ कर जा रहे थे, तब प्रभु ने अपने शिष्यों से पूछा था कि क्या वे भी उसे छोड़ कर जाना चाहते हैं। तब वह पतरस था जिसने यह जवाब दिया था, 'प्रभु, हम तुझे छोड़ कर कहाँ जाएं, अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं (यूहन्ना 6:60, 66-68)। पतरस द्वारा सुने गए अनन्त जीवन के वे शब्द कौन से थे? 'दूर हट शैतान!'

क्या हम ताड़ना के शब्दों को ऐसे शब्दों के रूप में देखते हैं जो हमें अनन्त जीवन तक पहुँचाते हैं?

पतरस ने ताड़ना को इस तरह देखा था, और इस बात ने उसे वह बनाया जो वह अंततः बना था।

एक और मौके पर पतरस ने प्रभु की ताड़ना को स्वीकार किया था। पतरस ने प्रभु से कहा था कि सारे शिष्य भी अगर उसका इनकार कर देंगे तब भी वह ऐसा नहीं करेगा। प्रभु ने फौरन ही उसे यह बता दिया था कि बारह घण्टों के अन्दर ही वह तीन बार उसका इनकार कर देगा (मत्ती 26:33-34)। लेकिन पतरस ने उस जवाब से स्वयं को अपमानित महसूस नहीं किया था। प्रभु ने फिर ऐसे ही मनुष्य को लेकर पैंतेकुस्त के दिन अपना मुख्य प्रवक्ता बनाया था।

पतरस ने क्योंकि ताड़ना मिलने पर स्वयं को नम्र व दीन किया, इसलिए परमेश्वर ने उसे ऊँचा उठाया। अपने स्वयं के अनुभव से सीखने के बाद पतरस 1 पतरस 5:5-6 में अब हमें उत्साहित करता है कि हमें स्वयं को हमेशा दीन करते रहना है। अपने आपको नम्र व दीन करने से हमारा कोई नुकसान नहीं हो सकता। एक दिन परमेश्वर हमें ऊँचा उठाएगा।

ताड़ना के समय जो मनोभाव पतरस ने दर्शाया, आइए उसकी तुलना में हम यहूदा इस्करियोती की ताड़ना और उसके मनोभाव से करते हैं। जब एक स्त्री ने यीशु पर बहुमूल्य इत्र उण्डेल दिया, तो यहूदा ने कहा कि वह एक ऐसा काम था जिसमें धन की बर्बादी हुई थी क्योंकि वही धन ग़रीबों को दिया जा सकता था (यूहन्ना 12:5; मत्ती 26:10-13)। यीशु ने यहूदा को बड़ी नरमी से झिड़कते हुए कहा था कि वह उस स्त्री से कुछ न कहे क्योंकि उसने एक अच्छा काम किया था। लेकिन यहूदा यह सुन कर क्रोधित हो गया और उसे बुरा लगा।

अगले ही पद में (मत्ती 26:14) हम पढ़ते हैं कि यहूदा फौरन ही मुख्य याजकों के पास गया और यीशु को पकड़वाने के लिए तैयार हो गया। इस घटना में समय का बहुत महत्व है। यहूदा को इसलिए बुरा लगा था क्योंकि यीशु ने उसे सार्वजनिक रूप में ताड़ना दी थी।

यीशु ने उससे सिर्फ इतना ही कहा था कि उसकी उस स्त्री के बारे में जो राय थी, वह सही नहीं थी। लेकिन उसे विचलित करने के लिए यही काफी था। जब आप टूटे हुए नहीं होते तो एक छोटी मामूली बात भी आपके लिए ठोकर का कारण बन जाएगी।

लेकिन यहूदा के काम के अनन्त परिणाम को देखें। और पतरस के काम के अनन्त परिणाम को देखें। दोनों को ताड़ना द्वारा परखा गया था-एक निष्फल हुआ, एक सफल हुआ।

आज हम भी इसी तरह परखे जा रहे हैं।

अगर सार्वजनिक ताड़ना से हम अपमानित होते हैं, तो इससे यही साबित होता है कि हम मनुष्यों की प्रशंसा चाहते हैं। अगर ऐसा है, तो इसके बारे में अभी जान लेना अच्छा है, कि हम ऐसी प्रशंसा पाने की लालसा से अपने आपको शुद्ध कर सकें। यह हो सकता है कि परमेश्वर ने यह परिस्थिति इसलिए बनने दी कि वह हमें दिखा सके कि हम मनुष्यों के मतों के कितने गुलाम हैं। अब हम अपने आपको धोकर आज़ाद हो सकते हैं।

तो, आइए हम हर समय सुधार के प्रति पतरस का रवैया अपनाएँ - चाहे प्रभु हमें सीधे अपनी आत्मा से सुधारें या किसी और के माध्यम से। यह हम सभी के लिए शाश्वत जीवन का मार्ग है। यदि हम अपने आप को नम्र करते हैं, तो हम परमेश्वर से अनुग्रह प्राप्त करेंगे और वह हमें सही समय पर ऊंचा करेगा।