लैव्य व्यवस्था 1 में हम होमबलि के विषय में पढ़ते हैं - जो कि खुद का परमेश्वर के आगे बलिदान करने का चित्र है. होमबलि को पहले टुकड़े किए जाते थे ताकि यह देखा जाए कि उसके किसी हिस्से में दोष न हो, और उसके बाद उसे बलि चढ़ाया जाता था. लोग अपनी आर्थिक योग्यता के अनुसार बैल, या भेड़ या बकरा या कबूतर या फाख्ता भी चढ़ाया करते थे. परंतु हर बलिदान दोषरहित होना आवश्यक था. होमबलि इस बात का चित्र है कि यीशु ने किस तरह अपने संपूर्ण पृथ्वी के जीवन में अपने शरीर को परमेश्वर पिता के आगे समर्पित किया था - और उसके बाद अंत में क्रूस पर भी. अपने संपूर्ण पृथ्वी के जीवन में उसने कलवरी के क्रूस पर अपने पिता के सामने बलिदान के रूप में अपने शरीर को अपर्ण करने से पहले, यीशु ने अपने शरीर को हर परीक्षा में शुद्ध बनाए रखा. साढ़े तैतींस वर्षौं के इस संसारिक जीवन के दौरान यदि एक भी धब्बा उसके जीवन में होता, तो परमेश्वर ने कलवरी के क्रूस पर यीशु के बलिदान को स्वीकार न किया होता. इसलिए जब उसे भूख लगी, तब उसने पत्थरों से रोटियां नहीं बनाई. यह पाप होता क्योंकि पिता ने उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था. उसका जीवन पूर्ण रूप से निर्भरता और आज्ञापालन का जीवन था. यीशु ने कभी भी कुछ अपने पिता की प्रेरणा के बगैर नहीं किया, भले ही वह उसकी अपनी भूख मिटाने के लिए पत्थर से रोटी बनाना क्यों न हो! परमेश्वर ने हमें इसी आज्ञाकारिता के स्तर के लिए बुलाया है. इसलिये यीशु का जीवन विजयी था. और इसलिए परमेश्वर पिता उससे प्रसन्न था.
एक और उदाहरण पर विचार करेंः लूका 4:38-42 में हम एक शहर में आयी बड़ी बेदारी के विषय में पढ़ते हैं. अगले दिन सुबह भीड़ उसके पीछे पड़ी रही और वह वहीं बने रहना चाहती थी, और बेदारी के सभाएं जारी रखना चाहती थी, परंतु यीशु ने कहा, "नहीं" क्यों? क्योंकि उस सुबह लोगों से मिलने से पहले, वह एकांत में अपने पिता से मिला था, और उसने पिता की आवाज़ यह कहते हुई सुनी थी कि उसे और कहीं जाना है. इसलिए वह भीड़ के दबाव में नहीं आया, परंतु वहीं गया जहां पिता ने उसे जाने के लिए कहा था. यदि वह भीड़ की बात मानता और बेदारी की सभाएं जारी रखता, तो वह पाप करता! क्या आपने पाप की ऐसी समझ अब तब प्राप्त की है? हम में से कितने लोग यह विश्वास करते हैं कि बेदारी की सभाएं चलाना भी पाप हो सकता है.
यीशु अपने जीवन में पाप के प्रति संवेदनशीलता के इसी स्तर पर रहता था. सामान्य तौर पर हम सोचते हैं कि पाप का मतलब क्रोधित होना, गंदे विचारों का रखना, ईर्ष्या या कड़वाहट रखना आदि. ये भी पाप हैं - परंतु छोटी कक्षा में यीशु, पाप से डॉक्टरेट के स्तर पर निपट रहा था. क्या आप जानते हैं कि यदि मसीह ने आपको जाने के लिए और किसी स्थान में सभा लेने के लिए नहीं कहा, और आप ऐसा करते हैं, तो आप पाप कर रहे हैं? परंतु हम इस डॉक्टरेट स्तर पर हम एक रात में नहीं पहुंच सकते. हमें एक कक्षा से अगली कक्षा में प्रति वर्ष धीरे धीरे उन्नति करना है. जब हम उन्नति करेंगे, तब हम पाएंगे कि हम पहले कई बातों को पाप नहीं समझते थे, परंतु अब वह हमारे लिए पाप है. "जब पाप बहुत ही पापमय ठहरता है" (रोमियों 7:13), तब हम यकीन से जान सकते हैं कि हम आत्मिक रीति से बढ़ रहे हैं! इसलिए जब हम यीशु के जीवन की ओर देखते हैं, तब हम कलवरी के क्रूस पर केवल उसकी मृत्यु के विषय में नहीं सोचते, परंतु उसके संपूर्ण जीवन के विषय में भी सोचते हैं, जहां पर उसने खुद को यह कहते हुए परमेश्वर पिता के आगे समर्पित किया, "तूने मेरे लिए एक देह तैयार की... और देख मैं आ गया हूं, ताकि हे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करूं" (इब्रानियों 10:5,7). यीशु ने अपने शरीर में कभी अपनी इच्छा पूरी नहीं की, परंतु हमेशा अपने पिता की इच्छा पूरी की. खुद को परमेश्वर के आगे होमबलि के रूप में अर्पित करने का यही अर्थ है.
रोमियों 12:1,2 में पौलुस हमें यही करने के लिए प्रोत्साहित करता है, "अपने शरीरों को जीवित और पवित्र बलिदान करके चढ़ाओ... जिससे तुम परमेश्वर की सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो" - बिल्कुल वैसा ही जैसा यीशु ने कियां यह होमबलि परमेश्वर के आगे चढ़ाई जाती थी और पूरी रीति से जला दी जाती थी. बाइबल कहती है कि यह "प्रभु के लिए सुखदायक सुगंध थी" (लैव्यव्यवस्था 1:17) - इसका मतलब परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली वस्तु. "यह मेरा प्रिय पुत्र है, और इससे मैं अति प्रसन्न हूं" पौलुस ने कहा कि उसके जीवन की अभिलाषा "प्रभु को प्रसन्न करना" थी (2 कुरिं. 5:9). जब हम अपने शरीरों को प्रभु के आगे बलिदान चढ़ाते हैं, तब यह कहना आसान होता है, "प्रभु, मैं अपना शरीर पूर्ण रूप से तुझे देता हूं." परंतु जब तक हम उसे काटते नहीं, तब तक नहीं जानते कि हमने उसे भेंट चढ़ाया है या नहीं. हम खुद को धोखा दे सकते हैं. उसे काटने और हर टुकड़े को भेंट चढ़ाने का मतलब क्या है - जैसा होमबलि में किया जाता था? इसका मतलब यह है कि हम अपने शरीर के हर टुकड़े को प्रभु के आगे भेंट चढ़ाते हैं.
हम कहते हैं, "प्रभु, यह मेरी आंखें हैं. मैंने उसका उपयोग पिछले वर्षों में शैतान के लिए और मेरे लिए किया, मैं उन बातों को देखता था ओर पढ़ता था जिनसे आपको चोट पहुंचती थी. परंतु अब मैं अपनी आंखें वेदी पर चढ़ाता हूं. इसके बाद मैं अपनी आंखों को उन वस्तुओं की ओर देखने के लिए या उन बातों को पढ़ने के लिए नहीं करना चाहता, जिनकी ओर यीशु नहीं देखेगा या नहीं पढ़ेगा. इसके बाद मैं अपनी आंखों से पाप नहीं करना चाहता." इसके बाद हम जीभ की ओर आगे बढ़ते हैं और कहते हैं, "प्रभु, यह मेरी जीभ है. इतने वर्षों से मैंने इस जीभ का उपयोग शैतान के लिए और मेरे लिए किया. जो मैं चाहता था कहता था, अपने लाभ के लिए झूठ बोलता था, लोगों से नाराज़ होता था और दूसरों की निन्दा और पीठ पीछे बुराई करता था और उन पर दोष लगाता था. परंतु अब मैं ऐसा करना नहीं चाहता. यह मेरी जीभ है, प्रभु. आगे से यह तेरी है प्रभु - पूर्ण रूप से." उसके बाद हम अपने हाथ और पांव और शरीर की अभिलाषाओं की ओर एक के बाद एक जाते हैं: "प्रभु, ये मेरे शरीर के अंग हैं और मेरी शारीरिक अभिलाषाएं हैं, जिनसे मैंने आपके विरोध में पाप किया और आपको दुख पहुंचाया. इसके बाद मैं उनका उपयोग खुद को प्रसन्न करने या अपनी वासनाओं को संतुष्ट करने के लिए नहीं करना चाहता. ये सब अंग तेरे हैं." जब हम हर एक अंग को काटकर एक के बाद एक वेदी पर रखते हैं, तब हम जानते हैं कि सचमुच हम अपने शरीर को पूर्ण रूप से परमेश्वर के आगे समर्पित कर रहे हैं या नही. जब होमबलि के टुकड़े किए जाते हैं, और उन्हें पूर्ण रूप से वेदी पर रखा जाता है, तब आप कह सकते हैं, "प्रभु, अब, आपकी आग इस बलिदान पर उतरने दे और उसे भस्म करने दे." हम लैव्यव्यवथा 9:24 में पढ़ते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर की आग होमबलि पर उतर आयी और उसे भस्म कर दिया. आग पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का चित्र है जो आग हमारे बलिदान को भस्म करने के लिए आती है और परमेश्वर के लिए हमारे शरीरों को प्रज्वलित करने के लिए आती है, परंतु जब तक होमबलि का हर एक टुकड़ा वेदी पर नहीं रखा गया, तब तक आग नहीं उतर आयी.