द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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परमेश्वर का वचन “उद्धार” के बारे में तीन कालों में बात करता है – भूतकाल (इफि 2:8), वर्तमान (फिलि 2:12), और भविष्य (रोमियों 13:11) – या दूसरे शब्दों में, धर्मी (सही) ठहराया जाना, पवित्रीकरण, महिमान्वित करना। उद्धार की एक नींव और एक ढांचा है। इसकी नींव पापों की क्षमा और धर्मी (सही) ठहराया जाना है।

धर्मी ठहराया जाना पापों की क्षमा से अधिक है। इसका अर्थ यह भी है कि हम मसीह के मरने, जी उठने, व स्वर्ग में उठाए जाने द्वारा परमेश्वर की नजर में धर्मी घोषित कर दिए गए है। यह हमारे कामो के आधार पर नहीं है (इफिसियों 2:8,9), क्योंकि हमारे धर्मी काम भी परमेश्वर की नजरों में मैले चिथड़ों के समान है (यशायाह 64:6)। हम मसीह की धार्मिकता को धारण किए हुए है (गलातियों 3:27)। मन फिराव और विश्वास, क्षमा पाने और धर्मी ठहराए जाने की शर्ते है (प्रेरितों के काम 20:21)।

सच्चा मन फिराव हमारे भीतर भरपाई का फल उत्पन्न करेगा अर्थात उधार लिया हुआ पैसा, वस्तुएँ व सरकारी कर जो हम पर बकाया है और जो वस्तुएँ हमने गलत तरीके से अपने पास रखी हुई है (जो दूसरों की है), उन्हें जहां तक संभव हो, लौटा देना है (लूका 19:8.9)। जब परमेश्वर हमें क्षमा करता है, तो वह यह भी चाहता है कि हम दूसरों को उसी तरह क्षमा कर दें। अगर हम ऐसा नहीं करते, तो परमेश्वर अपनी क्षमा वापिस ले लेता है (मत्ती 18:23-35)। मन फिराव और विश्वास के बाद पानी में डुबकी द्वारा बपतिस्मा होना चाहिए जिससे हम सबके सामने साक्षी देते है, मनुष्यों और दुष्टात्माओं को, कि हमारा पुराना मनुष्य वास्तव में दफन हो चुका है (रोमियों 6:4,6)। फिर हम पवित्र आत्मा में बपतिस्मा पा सकते है, जिससे हमें अपने जीवन व होठों द्वारा मसीह के साक्षी होने की सामर्थ मिलती है (प्रेरितों के काम 1:8)। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा एक ऐसी प्रतिज्ञा है जिसे परमेश्वर के सभी बच्चो को विश्वास से प्राप्त करना है (मत्ती 3:11, लूका 11:13)। यह हर एक शिष्य का विशेष अधिकार है कि उसके अंदर पवित्र आत्मा की यह साक्षी हो कि वह परमेश्वर की संतान है (रोमियों 8:16) और यह जाने की निश्चय ही वास्तव में उसे पवित्र आत्मा प्राप्त हो गया है (प्रेरितों के काम 19:2)।

पवित्र होना इमारत का मुख्य ढांचा है। पवित्रीकरण (अर्थात “अलग किया जाना” – पाप से और संसार से) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत नए जन्म से होती है (1 कुरिन्थियों 1:2), और पृथ्वी पर हमारे पूरे जीवन भर चलती रहनी चाहिए (1 थिस्सलुनीकियों 5:23,24)। यह वो काम है जिसकी शुरुआत परमेश्वर हमारे जीवन में पवित्र आत्मा द्वारा करता है और अपनी विधियों को हमारे मनों और हृदयों में लिख देता है, लेकिन हमें अपने हिस्से का काम करना है, डरते-काँपते हुए अपने उद्धार के काम को पूरा करते जाना है (फिलिप्पियों 2:12.13)। यह हम है जिन्हे शरीर के कामो को उस सामर्थ के द्वारा जिसे आत्मा हमें देता है, नाश करते जाना है (रोमियों 8:13)। हमें अपनी देह और आत्मा की सारी गंदगी से अपने आप को शुद्ध करना है और परमेश्वर के भय में पवित्रता को सिद्ध करना है (2 कुरिन्थियों 7:1)।

इस काम में जब एक शिष्य उग्र होकर पूरे हृदय से पवित्र आत्मा के साथ सहयोग करता है तो उसके जीवन में पवित्रीकरण का काम बहुत तेजी से बढ़ेगा और जो पवित्र आत्मा की अगुवाई में चलने में आलसी होंगे, उनके जीवन में यह काम धीमा और ठहरा रहेगा। परीक्षण के समय में ही हमारी यह परख होगी कि हममे सच्चे हृदय से पवित्र होने की अभिलाषा है या नहीं। पवित्र होने का अर्थ पुरानी वाचा की तरह सिर्फ बाहरी तौर पर नहीं है बल्कि व्यवस्था की धार्मिकता का हमारे हृदय के भीतर पूरा होना है (रोमियों 8:4)। यीशु ने मत्ती 5:17-48 में इस पर ज़ोर दिया था। यीशु ने कहा कि परमेश्वर से पूरे हृदय से प्रेम करने व अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करने में व्यवस्था की मांग पूरी हो जाती है (मत्ती 22:36-40)। परमेश्वर अब इस प्रेम की व्यवस्था को हमारे हृदयों में लिखना चाहता है क्योंकि यह उसका अपना स्वभाव है (इब्रानियों 8:10, 2 पतरस 1:4)। इस इच्छा का बाहरी प्रकटीकरण सचेत स्तर पर सारे पाप पर जय पाने और यीशु की सभी आज्ञाओं का पालन करने के रूप में होगा (यूहन्ना 14:15)।

इस जीवन में प्रवेश करना तब तक असंभव होगा जब तक कि शिष्य बनने की वे सारी शर्ते पूरी न हो जाए जो यीशु ने निश्चित की थी (लूका 14:26-33)। मूल रूप में यह शर्ते अपने जीवन में हमारे संबंधियों और हमारे खुद के जीवनो से भी बढ़कर प्रभु को प्रथम स्थान देने और अपनी भौतिक संपत्ति और वस्तुओं से लगाव न रखने के विषय में है। यह वह सकरा फाटक है जिसमे से होकर हमें पहले प्रवेश करना है। उसके बाद पवित्र होने का सकरा मार्ग आता है। जो पवित्रता के खोजी नहीं है, वे कभी प्रभु को नहीं देख पाएंगे (इब्रानीयों 12:14)।

जब की यह संभव है कि हम यहाँ और अभी, हमारे विवेक में सिद्ध हो जाए (इब्रानीयों 7:19, 9:9,14)। फिर भी हमारे लिए निष्पाप रूप में सिद्ध होना तब तक संभव नहीं जब तक यीशु के आने पर हमें एक महिमान्वित देह नहीं मिल जाती (1 यूहन्ना 3:2)। हम फिर तभी उसके जैसे हो सकते है। लेकिन हमें अभी ही उसके समान चलने की कोशिश करते रहना है, जैसा वह चला है (1 यूहन्ना 2:6)। जब तक हम अपने इस भ्रष्ट देह में है, तब तक हम चाहे कितने भी पवित्र हो जाएँ, हममें अचेत पाप पाया जाएगा (1 यूहन्ना 1:8)। लेकिन हम अपने विवके में सिद्ध हो सकते है (प्रेरितों के काम 24:16)। और अगर हमारे हृदय सच्चे है (1 कुरिन्थियों 4:4) तो हम अभी सचेत स्तर पर होने वाले पाप से मुक्त हो सकते है (1 यूहन्ना 2:1)।

इसलिए हम मसीह के दूसरे आगमन का और हमारे महिमान्वित होने का इंतजार करते है – जो हमारे उद्धार के पूरा होने का अंतिम भाग है, जब हम निष्पाप रूप में सिद्ध हो जाएंगे (रोमियों 8:23, फिलिप्पियों 3:21)।