द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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1.मध्यस्थी की सेवकाई : जकर्याह 3:1 में हमने पढ़ा कि यहोशू महायाजक प्रभु के सामने खड़ा था और शैतान उस पर आरोप लगाने के लिए वहाँ खड़ा था। शैतान हमेशा अगुवों पर दोष लगाने और उन्हें नुकसान पहुँचाने की ताक में रहता है। वह उन्हें और उनकी पत्नी और बच्चों को निशाना बनाता है। एक अगुवे का न्याय कठोरता से न करें क्योंकि वह आपसे ज़्यादा शैतान के निशाने पर होता है। शैतान आपकी पत्नी और बच्चों से ज़्यादा उनके पत्नी और बच्चों पर अधिक निशाना लगाता है। शैतान वहाँ खड़ा होकर परमेश्वर के सम्मुख यहोशू पर दोष लगा रहा था। लेकिन परमेश्वर ने शैतान से कहा, “मैं प्रभु-परमेश्वर, तेरे सारे दोषारोपण को अस्वीकार करता हूँ” (जकर्याह 3:2) (लिविंग अनुवाद)। हमारे पिता के पास एक मध्यस्थ है – अर्थात यीशु मसीह जो धर्मी है। बहुत बार हमारा ध्यान अपने दोष लगाने वाले पर इतना ज़्यादा केंद्रित हो जाता है कि हम यह भूल ही जाते हैं कि हमारा एक मध्यस्थ भी है जो निरंतर हमारे लिए प्रार्थना कर रहा है। इस समय स्वर्ग में दो सेवकाइयाँ चल रही है। एक शैतान की है जो दोष लगाता है। उसने अय्यूब और यहोशू पर दोष लगाया था। और फिर स्वर्ग में एक दूसरी सेवकाई भी चल रही है। “यीशु हमारी ओर से विनती करने के लिए सर्वदा जीवित है” (इब्रानियों 7:25)। यहाँ दो सेवकाइयाँ - दोष लगाने और मध्यस्थी करने की है। जो शैतान के साथ संगति करते हैं, वे दूसरे विश्वासियों पर दोष लगाते हैं। आप जब भी किसी विश्वासी की पीठ के पीछे उसकी बुराई करते हैं, तो चाहे आप इस बात को जाने या न जाने लेकिन आप शैतान का हाथ पकड़कर उसे कहते हैं, “शैतान, मैं तेरी बात से सहमत हूँ। वह व्यक्ति ऐसा/ऐसी ही है”। और हर बार जब आप एक भाई के लिए प्रार्थना करते हैं जो कमजोर है, तो आप यीशु का हाथ पकड़कर यह कहते हैं, “प्रभु, मैं तेरे साथ सहमत हूँ। हमें उस भाई के लिए प्रार्थना करने और उसे उसकी समस्या से छुड़ाने की ज़रूरत है”

2. प्रोत्साहन की सेवकाई : ज़कर्याह के पास निराश लोगों को प्रोत्साहित करने की एक आशिषित सेवकाई थी। यहूदी बाबुल से वापस लौटे थे जहाँ उनके पिता ग़ुलाम थे और वे गरीब, भयभीत और हतोत्साहित थे। उन्होंने वहाँ बहुत यातनाएँ सही थी। वे 200 साल पहले के अपने पूर्वजों की तरह सुसंस्कृत, निर्मल या समृद्ध नहीं थे। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करना जकर्याह की बुलाहट थी। जकर्याह 8: 6,8 में, प्रभु ने कहा "इस समय यह सब तुम्हारी नज़रों में असंभव लग रहा होगा क्योंकि इस समय तुम परमेश्वर के बचे हुए सिर्फ़ थोड़े से और निरुत्साहित लोग हो। क्या तुम यह सोचते हो कि मुझ सर्व-शक्तिमान परमेश्वर के लिए यह असंभव है? मैं अपने लोगों को लौटा ले आऊँगा और वे यरुशलेम (कलीसिया) में सुरक्षित रहेंगे। वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनके परमेश्वर के रूप में उनके प्रति विश्वासयोग्य रहूंगा”। इस तरह परमेश्वर हमें तब तक काम करने के लिए उत्साहित करता है जब तक कि उसकी कलीसिया के निर्माण का काम पूर्ण और सिद्ध नहीं हो जाता। “इसलिए न तो भयभीत हो और न ही निरुत्साहित हो बल्कि मंदिर (कलीसिया) को बनाने का काम करते रहो (ज़कर्याह 8:9-13) (लिविंग अनुवाद)। ज़कर्याह के समय में ऐसे उत्साहजनक संदेश ने लोगों को मंदिर के निर्माण के लिए कठोर परिश्रम करने के लिए प्रेरित किया था। और आज भी ऐसा ही उत्साहित करने वाला वचन लोगों को कलीसिया का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

3. दूसरों को संतुलित करने की सेवकाई : ज़कर्याह 4: 1-14 में, दो पेड़ परमेश्वर के अभिषिक्‍त सेवकों का प्रतीक हैं, जिनका उपयोग परमेश्वर हर समय कलीसिया को ताजा और आत्मा से भरा रखने के लिए करता हैं। वे स्वयं आत्मा से भरे होते हैं और हमेशा आत्मा से जुड़े रहते है। आप जब भी उन्हें मिलते हैं उनमें से तेल प्रवाहित होकर आपको आशीष देता है। कलीसिया को परमेश्वर के ऐसे बहुत से सेवकों की ज़रूरत है। हाग्गै और ज़कर्याह ऐसे दो व्यक्ति थे जो मिलकर काम कर सकते थे। परमेश्वर के हर एक सेवक के लिए यह ज़रूरी होता है कि उसकी सेवकाई एक दूसरे सेवक की सेवकाई द्वारा संतुलित होती रहे। एक पेड़ एक ओर से तेल उँडेलता है और दूसरा पेड़ दूसरी ओर से तेल उँडेलता है। एक व्यक्ति अनुग्रह पर ज़ोर देता है और दूसरा सत्य पर ज़ोर देता है। लेकिन दोनों मिलकर परमेश्वर की उस महिमा को प्रदर्शित करते हैं जो मसीह में प्रकट हुई थी और कलीसिया का दीपदान ज्योतिर्मय होकर चमकता हैं (यूहन्ना 1:14)। कलीसिया की उन्नति के लिए जब दो भाई इस तरह मिलकर काम कर सकते हो – जहां दोनों ही पवित्र आत्मा से इस तरह भरे हों कि उनमें कोई स्पर्धा, ईर्ष्या, व्यक्तिगत महत्वकांक्षा, या स्वयं को दूसरे से बेहतर दिखाने की कोई इच्छा न हो – बल्कि उनकी सिर्फ़ यही अभिलाषा हो कि दीपदान जलता रहे और वे ऐसी कलीसिया का निर्माण कर सकते हैं जिस पर अधोलोक के फाटक कभी प्रबल नहीं हो सकते।