द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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1 कुरिन्थियों 4:2 (टी.एल. बी. अनुवाद) में हम पढ़ते है कि, “प्रभु के सेवक के लिए सबसे मुख्य बात यह है कि वह केवल उन ही कामों को करे जिसे उसका स्वामी उसे करने को कहे”। एक विश्वासयोग्य दास होने का यही अर्थ है। प्रश्न यह नहीं है कि आप कितना कार्य करते हैं, लेकिन यह कि क्या आप केवल वह करते है जो आपको प्रभु ने करने के लिए कहा है – और उसी तरह से जिस तरह से वह चाहता है। उसके लिए, आपको परमेश्वर की बाँट जोह कर उससे पूछना पड़ेगा कि "प्रभु तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ? मैं सिर्फ वही करना चाहता हूँ”। उदाहरण स्वरुप, अगर आपने एक नौकर रखा है, तो आप यह नहीं चाहेंगे कि वह अपनी मर्जी से आपके लिए जो करना चाहे वह करता रहे। नहीं। आप यह चाहेंगे कि वह आपकी बात सुने और वही करे जो आप उससे करने के लिए कहें। लेकिन परमेश्वर ने अपने वचन में जो कहा है, ज़्यादातर मसीही सेवक उसको नहीं सुनते हैं, उन ईश्वरीय सिद्धांतों का पालन नहीं करते। इसके बजाय वे परमेश्वर के काम को उस तरह करते है जो उन्हें सही लगता है – उनकी अपनी चतुराई भरे विचारों के अनुसार जो अक्सर सांसारिक होते है। प्रभु की सेवा करने के लिए वे अपने ही कार्यक्रम बनाते है, और उनमें इतना धीरज नहीं होता कि वे प्रभु के सामने बैठ कर अपने लिए उसकी इच्छा जानने की बाँट जोहते रहें।

1 कुरिन्थियों 4 में, पौलुस कहता है कि मसीह के सच्चे सेवक (जो क्रूस के मार्ग में चलते है), वे इस संसार में आदर नहीं पाएंगे (और इसमें सांसारिक विश्वासी भी शामिल है) । परमेश्वर की कलीसिया में प्रेरित सबसे बड़े सेवक होते है। वे कलीसिया के प्राचीनों के प्राचीन होते है। प्रेरित कलिसियाएं स्थापित करते है, प्राचीन नियुक्त करते है, और उन प्राचीनों का मार्गदर्शन करते है। लेकिन संसार इन प्रेरितों को कैसे देखता है? “परमेश्वर ने हम प्रेरितों को सब लोगों के बाद ठहराया है”(1 कुरिन्थियों 4:9)। संसार की नजर में प्रेरित सामाजिक सीढ़ी पर सबसे नीचे है। वे “ऐसे कैदियों की तरह है जिन्हें जल्दी ही मृत्यु-दंड मिलने वाला है...उन्हें लोग घूर- घूरकर देखते है...वे मूर्ख है....ठट्ठों में उड़ाएँ जाते है... लात और घूसों से मारे जाते है” (1 कुरिन्थियों 4:9-11 लिविंग बाइबल अनुवाद)। पौलुस अपनी और दूसरे प्रेरितों की तुलना कुरिन्थियों के शारीरिक मसीहियों से करता है। वह कहता है, “तुम तृप्त हो, धनवान हो, और संसार द्वारा बुद्धिमान, बलवान और प्रतिष्ठित समझे जाते हो। दूसरी ओर, हम, संसार द्वारा तुच्छ समझे जातें हैं। यीशु मसीह का सच्चा प्रेरित इस संसार द्वारा आदर नहीं पायेगा। केवल सांसारिक (शारीरिक) मसीही ही संसार द्वारा आदर पाएंगे। यदि आप संसार के आदर-सम्मान की खोज करेंगे तो आप निश्चय ही एक सांसारिक मसीही बन जायेंगे।

मसीह का एक सच्चा प्रेरित सुसमाचार के प्रचार से कभी धनवान नहीं बनेगा। जब भी आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखें जो सुसमाचार प्रचार करने से धनवान बन गया है, तो आप निश्चित कर सकते है कि वह मसीह का सच्चा प्रेरित नहीं है। ऐसा व्यक्ति जिसने सुसमाचार के प्रचार द्वारा अपने और अपने परिवार के लिए बड़े- बड़े घर और जमीन-जायदाद ख़रीदा है, वह मसीह का प्रेरित नहीं है। एक व्यक्ति जो सुसमाचार प्रचार द्वारा प्राप्त किए हुए धन से अपने लिए एक महंगी कार खरीदता है, वह मसीह का प्रेरित नहीं है। वह सिर्फ एक शारीरिक मसीही है। पौलुस अपने प्रचार के वरदान द्वारा बहुत सा धन अर्जित कर सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। परमेश्वर का एक सच्चा सेवक सुसमाचार प्रचार के माध्यम से पैसे नहीं कमाता। वह अपनी सांसारिक जरूरतें पूरी करने के लिए उपहार स्वीकार कर सकता है – जैसे यीशु ने और उसके प्रेरितों ने किया था – परन्तु ऐसा करने से वह करोड़पति नहीं बनेगा। परंतु आज हम मसीही जगत में इसके ठीक विपरीत ही देखते हैं। इस वजह से ही इन तथा-कथित प्रेरितों और प्रचारकों के प्रति (जो बीमारों को भी चंगा करते है), मेरे मन में जरा भी आदर भाव नहीं है। मैं इन सुसमाचार प्रचारकों की तुलना में, जो की गरीब लोगों से दशमांश लेकर सुसमाचार प्रचार द्वारा धनवान बन जाते है, उन रोमन कैथोलिक पादरियों के प्रति ज्यादा आदर रखता हूं जो उत्तर भारत में जाकर एक साधारण जीवन बिताते हैं और गरीब लोगों की मदद करते है। आप किसका अनुसरण करेंगे? पौलुस या पतरस का? या आज के इन जालसाजों (झूठों) का? पौलुस आगे कहता है, “हमारे साथ दुर्व्यवहार किया जाता है....हम अपने हाथों से कठोर परिश्रम करते है” (1 कुरिन्थियों 4:11,12)।

पौलुस स्वयं ही अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरी करता था, लेकिन फिर भी उसकी बुराई की जाती थी और उसे बदनाम किया जाता था। लोग उसके बारे में झूठी बातें फैलाते थे, लेकिन उसके बदले वह उन्हें आशीष देता था। वह जहां कहीं भी गया, लगभग हरेक जगह में उसे सताया गया, और वह “संसार का मैल व सब वस्तुओं का कूड़ा-करकट बन गया था” (1 कुरिन्थियों 4:13)। इसका अर्थ है कि संसार ने उसे गंदे नालों में बहने वाले कीचड़ से ज्यादा और कुछ नहीं समझा था। उस समय के संसार के सबसे बड़े प्रेरित के साथ इस तरह का व्यवहार किया गया था। इसके विपरीत, कुरिन्थियों के मसीहियों का संसार द्वारा आदर और सम्मान किया जाता था– और वे इससे खुश थे। मुझे यह कहते हुए बड़ा दुख होता है कि मसीही जगत ने अब इस विषय में समझ खो दिया है कि परमेश्वर का सेवक होने का क्या अर्थ होता है। हमारा काम अब यह है कि हम अपने देश में यह दिखाएँ कि परमेश्वर का एक सच्चा सेवक होना क्या होता है – ऐसा व्यक्ति होना जो कोई समझौता नहीं करता और अपने लिए संसार से कोई आदर नहीं पाना चाहता। परमेश्वर किसी की धर्म विज्ञान की डिग्रियों या दूसरी सांसारिक योग्यताओं से प्रभावित नहीं होता। ऐसी योग्यताओं से शैतान भी नहीं डरता।

ज़्यादातर मसीही सेवक, सिंहासनों पर बैठना और सम्मानित होना चाहते है। आप उस मार्ग में न जाएँ। अपने पूरे जीवन भर परमेश्वर के नम्र व दीन सेवक बने रहें। एक साधारण भाई और एक साधारण बहन बने रहे, यद्यपि संसार एवं बेबीलोनी मसीहियत आपको तुच्छ जाने।

क्या पौलुस को उन कुरिन्थियों के मसीहियों से ईर्ष्या हो रही थी जो प्रतिष्ठित थे और सुख विलासता से रहते थे? नहीं। उसे उन पर दया आ रही थी क्योंकि वह उनसे ज्यादा आशिषित अवस्था में था। उनसे एक पिता की तरह उनसे बात की - और उन्हें लज्जित करने के लिए बातें नहीं की। (1 कुरिन्थियों 4:14)। परमेश्वर का एक सच्चा सेवक एक पिता होता है। वह लोगों को लज्जित नहीं करता है। शिक्षक अपने छात्रों को लज्जित करते हैं, यदि छात्र कुछ गलती करते है। हालाँकि, एक अच्छा पिता कभी भी अपनी संतान को लज्जित नहीं करेगा, भले ही उसने कुछ मूर्खतापूर्ण कार्य क्यों न किया हो। परन्तु मसीही जगत में पितरों और शिक्षकों का समानुपात 1:10,000 है (अर्थात एक पिता 10,000 (दस हजार) शिक्षकों के समतुल्य है) (1 कुरिन्थियों 4:15)।