द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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वचन की सेवकाई के लिये जिन्हें बुलाया गया है उन्हें याद रखने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण बातें परमेश्वर ने यहेजकेल नबी को बताया है।

1. सबसे पहले, परमेश्वर ने उससे कहा, ''मत डर'' (यहेजकेल 2:6)। यह शब्द बार बार आए है। ''हे मनुष्य की संतान, तू उन से न डरना, चाहे तुझे कांटो, ऊंटकटारो आरै बिच्छुओं के बीच भी रहना पड़े, तौभी उनके वचनों से न डरना; यद्यपि वे बलवई घराने के है, तौभी न तो उनके वचनों से डरना, और न उनके मुंह देखकर तेरा मन कच्चा हो'' (यहेजकेल 2:6)। जब यहेजकेल ने भविष्यद्वाणी किया तो यहूदियों ने उसे ठट्टों में उड़ाया और यहां तक कि उसे मारने की धमकी दी। सारे भविष्यद्वक्ताओं ने इस प्रकार के सताव, विरोध का सामना किया। परमेश्वर उन भविष्यद्वक्ताओं के साथ रहा और परमेश्वर आप के साथ भी रहेगा, यदि आपकी बुलाहट इस तरह के लोगों के बीच में वचन की सेवकाई करना हो तो। परमेश्वर जैसे उनके साथ था, आपके साथ भी रहेगा। उनका भरोसा परमेश्वर की महानता पर ही था। परमेश्वर ने यहेजकेल से कहा, ''सो चाहे वे सुने या ना सुनें; तौभ तू मेरे वचन उनसे कहना'' (यहेजकेल 2:7)। वे न सुने तौभी, एक दिन उन्हें स्मरण होगा कि भविष्यद्वक्ता ने उन्हें चेतावनी दी थी। संदेश देने के बाद भविष्यद्वक्ता की जिम्मेदारी पूरी होती है। परंतु, वह यदि संदेश न दे तो लोगों के खून की जिम्मेदारी उस पर होगी।

यहेजकेल के तिसरे अध्याय में परमेश्वर ने यहेजकेल को पुस्तक को खाने को कहा। जो संदेश हम दूसरों को देते है वह सर्वप्रथम हमें खाना और पचाना भी है। परमेश्वर का वचन उनके मुंह में मधु के समान था। प्रकाशितवाक्य में भी परमेश्वर यूहन्ना से कहता है कि वह पुस्तक खा ले। उसके पश्चात् ही भविष्यद्वाणी करने की अनुमती यूहन्ना और यहेजकेल को थी। वचन की सेवकाई में यह महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। परमेश्वर जो वचन आपके द्वारा दूसरों को देना चाहता है वह पहले आपसे कहता है। परमेश्वर का वचन निम्नलीखित प्रशन प्रचारकों को पूछता है, ''सो क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? (रोमियों 2:21)। जब आप किसी की बुराई करते हो तो आप उस व्यक्ति के सम्मान की चोरी करते है। क्या आप उसे चोरी समझते है? या सिर्फ पैसों की चोरी को चोरी समझते हो? ''तू जो कहता है, व्यभिचार न करना, क्या आप ही व्यभिचार करता है?'' क्या आप आंखों से व्यभिचार करते हो? पहले हमे पुस्तक खाना है फिर परमेश्वर हमारी सेवकाई को अभिषेक करेगा। बहुत से ऐसे प्रचारक है जो पुस्तक को खाए बिना प्रचार करते है। इसलिये उनकी सेवकाई मृतक और निरस है। यदि आप प्रभावशाली सेवकाई चाहते है तो पहले पुस्तक को खा लो। परमेश्वर का वचन दोधारी तलवार की नाई है। जिसकी पहली धार मुझे काटे तथा दूसरी धार का उपयोग दूसरों को काटने में करना चाहिये। यदि यह हमें पहले न काटे तो हम अपने वचन की सेवकाई में कठोर और निर्दयी साबीत होंगे। इसलिये पहले पुस्तक को खा लों।

२. यहां वचन की सेवकाई का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है : ''तब मैं उठकर मैदान में गया, और वहां देखा, कि यहोवा का प्रताप जैसा मुझे कबार नदी के तीर पर, वैसा ही यहां भी दिखाई पड़ता है; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा'' (यहेजकेल ३:२३)। हम हमारे मुंह को मिट्टी में ही रखे। कई बार वास्तविक तौर पर ऐसा करना भी अच्छा होता है। अपने कमरे में मुंह के बल गिर कर प्रभु से कहे, ''प्रभु यही मेरा उचित स्थान है, मेरी पात्रता यही है, मैं शून्य हूं।'' हम जो सबके साम्हने खड़े होकर प्रचार करते हैं वे बड़े खतरे में है क्योंकि कई लोग हमें देखते है और हमारी प्रशंसा करते है। दूसरों से भी बढ़कर हमें आवश्यकता है कि परमेश्वर के साम्हने बार बार अकेले में जाकर मुंह के बल पर गिरे और यह जाने की हम शून्य है।

परमेश्वर हमारा जीवन किसी भी क्षण ले सकता है। वह चाहे तो हमारा अभिषेक एक क्षण में वापस ले सकता है। मैं सबसे अधिक इस बात से डरता हूं कि मेरे जीवन से अभिषेक वापस न लिया जाए। मैं चाहता हूं कि मेरा धन, स्वास्थ मुझसे ले लिया जाए ना कि अभिषेक। पैसा, ज़ुबान तथा छोटी बातों में बेपर्वाह होना हमारे अभिषेक निकल जाने का कारण हो सकता है। जब यहेजकेल मुंह के बल पर गिरा तब पवित्र आत्मा उस पर आकर उसने यहेजकेल को पैरों पर खड़ा किया। जमीन के मिट्टी पर गिरने से ही पवित्र आत्मा हम पर आएगा। पवित्र आत्मा हमें पैरों पर खड़ा करे और ऊँचा उठाए। हम स्वयं को ऊँचा न करे।