एक कलीसिया के रूप में हमारी सेवकाई का विरोध किए जाने का मुख्य कारण यही रहा है कि हमने पवित्रता और धार्मिकता का प्रचार किया है। हमने इस सत्य का प्रचार किया है कि “पाप अब हम पर प्रभुता न करने पाएगा” (रोमियों 6:14), और “जो धन से प्रेम करते हैं वे परमेश्वर से प्रेम नहीं कर सकते” (लूका 16:13), और यह कि “जो क्रोध करते हैं और दूसरों को तुच्छ जानते हैं, वे नर्क में जाएँगे” (मत्ती 5:22), और “जो अपनी आँखों द्वारा स्त्रियों की लालसा करते है, वे भी नर्क में जाने के ख़तरे में है” (मत्ती 5: 28,29), आदि। यीशु के ये शब्द क्योंकि ज़्यादातर विश्वासियों द्वारा पचाए नहीं जाते, इसलिए उन्होंने हमारा विरोध किया है।
हमने मसीही सेवकों की वेतन व्यवस्था का विरोध किया है (पहली शताब्दी में यह बात देखी/सुनी नहीं गई थी), और मसीही काम के लिए निरंतर पैसे माँगने के काम का विरोध किया है क्योंकि ये दोनों बातें वचन के अनुसार नहीं है। इससे वे लोग हमसे क्रोधित हो गए जो अपने प्रचारों द्वारा धन अर्जित करते हैं और अपने निजी राजपाट खड़े करते हैं। हमने कलीसिया में व्यक्तिवादी पंथों, पोपवाद, धर्म-मतवाद, कलीसिया में पश्चिमी देशों के वर्चस्व और पश्चिमी अगुवाई पर अस्वस्थ रूप में निर्भर रहने का भी विरोध किया है, जिसने कलीसिया के उन्नति में रुकावट पैदा की है। इससे सभी व्यक्तिवादी पंथ हम पर क्रोधित हुए हैं।
शैतान का लक्ष्य किसी न किसी तरह परमेश्वर के मंदिर को अपवित्र करना है। वह अपनी “सेनाओं” (दानिय्येल 11:31) को कलीसिया के अंदर ही तैयार कर देगा, कि परमेश्वर के काम को अंदर से ही ख़त्म कर सके। मसीही जगत का इतिहास यह प्रकट करता है कि पिछले 20 शताब्दियों में कैसे इन सेनाओं ने एक समूह के बाद दूसरे समूह को और एक आंदोलन के बाद दूसरे आंदोलन को भ्रष्ट किया है।
कलीसिया की निष्फलता का मुख्य कारण यही रहा है कि जिन पहरेदारों को परमेश्वर ने कलीसिया में नियुक्त किया था, वे सचेत और जागते हुए नहीं रहे। शैतान इन पहरेदारों को सुला देने में कैसे सफल हुआ? कुछ जगहों में, उन्हें सच बोलने से डराने द्वारा कि उनकी बात से कुछ लोग बुरा न मान जाए – ख़ास तौर पर धनवान और प्रभावशाली लोग। दूसरी जगहों में, उन्हें पत्नियों को ख़ुश करने वाले और धन और अच्छा खाना-पीना पसंद करने वाला बनाने द्वारा। कुछ मामलों में, पहरेदार स्वयं अपने संदेश के लगातार विरोध का सामना करते हुए थक गए, क्योंकि उन्होंने कलीसिया में परमेश्वर के स्तरों को बनाए रखने की कोशिश की। तब उन्होंने मनुष्य को प्रसन्न करने के लिए अपने संदेश के आवेग को कम कर दिया था।
इब्रानियों 12:3 में, हमें यीशु की तरफ़ देखने के लिए कहा गया है “जिस ने स्वयं के विरोध में पापियों के शत्रुता को इसलिए सहा कि हम थक कर हिम्मत न हार जाए”। ये पापी कौन थे जिन्होंने यीशु का विरोध किया था? ये इस्राएल की वेश्याएँ या हत्यारे या चोर-डाकू नहीं थे। न ही यूनानियों या रोमियो ने उसका विरोध किया था। नहीं। जिन पापियों ने लगातार यीशु का विरोध किया, वे इस्राएल में बाइबल का बड़े जोर-शोर से प्रचार करने वाले और धार्मिक अगुवे थे। वे यीशु से ईर्ष्या करते थे और अंत में उन्होंने उसे मार डाला।
अगर हम यीशु के पीछे चलेंगे, तो हमें भी आज इसी समूह के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। हमारा सबसे ज़्यादा विरोध वे प्रचारक करेंगे जिन्होंने परमेश्वर के मानक मापदंड को नीचे कर दिए हैं और कलीसिया को भ्रष्ट कर दिया है। ये हमारा विरोध करनेवाले शैतान के मुख्य प्रतिनिधि होंगे। यह बहुत आसान होता है कि हम ऐसे विरोध का लगातार सामना करते हुए थक जाएं और हताश हो जाए।
शैतान यह कोशिश करता है कि “सताव द्वारा परमेश्वर के संतों को थका दे (दानिय्येल 7:25)। जय पाने का सिर्फ़ एक ही तरीक़ा है कि हम यीशु के उदाहरण की तरफ़ देखते रहे, जिसने विरोध का तब तक लगातार सामना किया जब तक कि उसके शत्रुओं ने उसे मार न डाला। हमें भी “प्राण देने तक विश्वासयोग्य रहना चाहिए” (प्रकाशितवाक्य 2:10)। ऐसा प्रचारक जो अपने जीवन के अंत तक विरोध का सामना करने के लिए तैयार नहीं रहेगा, वह “कानों की खुजली मिटाने वाला” ऐसा प्रचारक बन जाएगा जो “लोगों को अपने साथ मिलाने के लिए उनकी चापलूसी करेगा” (दानिय्येल 11:32)। और उसका अंत एक समझौता करने वाले बिलाम की तरह होगा।
एक कलीसिया के रूप में हमारी बुलाहट यह है कि हमारे बीच में हम किसी भी क़ीमत पर परमेश्वर के मानक मापदंडों को ऊँचा उठाए रखें। हमें हर समय मसीह-विरोधी की शक्तियों से सचेत रहना है। पौलुस जब तीन सालों तक इफिसियों की कलीसिया के बीच में रहा, तो परमेश्वर के अनुग्रह से उस ने कलीसिया को शुद्ध बनाए रखा। लेकिन जब वह उनके बीच में से विदा हो रहा था, तब उसने कलीसिया के प्राचीनों से कहा कि वह जानता है कि उसके जाने के बाद कलीसिया अशुद्ध हो जाएगी (प्रेरितों के काम 20:29-31)। और जैसा हम इफिसियों को लिखे दूसरे पत्र में पढ़ते हैं (प्रकाशितवाक्य 2:1-5), उनके बीच में बिलकुल वैसा ही हुआ था।