द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   जवानी परमेश्वर को जानना चेले
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मत्ती 11:28-30 में, यीशु ने विश्राम पाने और एक बोझ होने के बारे में बात की थी। यीशु द्वारा वहाँ बोले गए शब्दों का अगर हम भावानुवाद करें तो वह पृथ्वी के सारे बोझों की तरफ से हमें विश्राम लेने और हमारे हृदयों पर उसका बोझ (जुआ) ले लेने के लिए कह रहा था। हम प्रभु का बोझ तब तक नहीं उठा सकते जब तक हम उसे अपने पृथ्वी के सारे बोझ नहीं दे देते ("अपना बोझ प्रभु पर डाल दे - उसे आपकी सारी चिंताएँ करने दें" - भज. 55:22; “खाने और कपड़े की चिंता न करो। अगर तुम्हें किसी बात की चिंता ही करनी है, तो परमेश्वर और उसके राज्य की चिंता करो” (मत्ती 6:31,33 भावानुवाद)।

अगर आपके मनों में पृथ्वी के मामलों की आशंकाएं और चिंताएं भरी होंगी, तो आप प्रभु के लिए निष्प्रभावी हो जाएंगे। बेशक, आपको पृथ्वी के मामलों के बारे में सोचना है, लेकिन आपको उनमें से किसी के भी बारे में चिंता नहीं करनी है। आपके हृदयों में सिर्फ उन्हीं बातों के प्रति दिलचस्पी हो जिनका अनन्त मूल्य है। हम इस तरह इस पृथ्वी के लोगों से भिन्न हैं। पृथ्वी पर आपकी शैक्षणिक परीक्षाओं के नतीजों का भी कोई अनन्त मूल्य नहीं है। यक़ीनन, आपको उनमें अपना सर्वश्रेष्ठ करना है। लेकिन आपको उसके नतीजे की चिंता नहीं करनी है।

अगर आप पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करने में 100% अंक पाने की खोज में रहेंगे, तो आप अनन्त में प्रथम आएंगे। मैंने स्वयं बहुत साल पहले यही चुनाव किया था।

सपन्याह 3:17 का भावानुवाद इस प्रकार है जो कुछ भी हो रहा है, उसमें “परमेश्वर ख़ामोशी से प्रेम में आपके लिए योजना बना रहा है।" और प्रभु हमें यह भी याद दिलाता है, “जो मैं करता हूँ, तुम अभी वह नहीं समझ सकते, लेकिन बाद में समझोगे” (यूहन्ना 13:7)।

अंत में, मैं आपको एक बार फिर इस बात में प्रोत्साहित करना चाहता हूँ (जैसे मैं सभी जगह लोगों को उत्साहित करता रहता हूँ) कि आप नम्रता व दीनता की खोज में रहें और अपने बारे में हमेशा नीचे विचार रखें। इसका अर्थ नीचे स्तर का आत्म- गौरव नहीं है, या न ही परमेश्वर की संतान के रूप में आपका और उन दान-वरदानों व योग्यताओं का कम मूल्यांकन करना है जो परमेश्वर ने आपको दिए हैं। आप परमेश्वर की संतानें हो, इसलिए आपके जीवन में नीचे आत्म-गौरव के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन जब आप यह समझते हैं कि आप परमेश्वर के सम्मुख कुछ नहीं हैं, सिर्फ तभी यह होता है कि परमेश्वर आपके जीवन में सब कुछ हो जाता है। दूसरे जो आपको जानते हैं उन्हें परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए जो वे आप में देखते हैं। इसमें अकेले परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए अपने स्वयं के विकल्पों को छोड़ना शामिल होगा। इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने जो कुछ भी आपको दिया है उसके लिए हर समय महिमा देना और जो कुछ उसने आपको दिया है उसका केवल उसकी महिमा के लिए उपयोग करने का निश्चय करना।

कभी किसी मनुष्य को नीची नज़र से न देखें और न ही किसी का मज़ाक उड़ाएं, चाहे उसमें कितनी भी कमी या कमज़ोरियाँ हों। परमेश्वर नम्र व दीन लोगों को भरपूर अनुग्रह देता है और वे असाधारण आत्मिक उन्नति करते हैं। आप अपने सारे दिनों में, यीशु की तरह, नम्रता व दीनता में चलते रहें ।