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“परमेश्वर ज्योति और प्रेम है।” (1 यूहन्ना 1:5; 4:8) वह “अगम्य ज्योति में वास करता है।”(1 तीमुथियुस 6:16) क्योंकि वह पवित्र है, इसलिए वह हमें भी पवित्र होने के लिए बुलाता है।

लेकिन मनुष्य के लिए पवित्रता केवल प्रलोभन के माध्यम से ही आ सकती है यथा - आदम को निर्दोष बनाया गया था, उसे अच्छे और बुरे का ज्ञान भी नहीं था। परमेश्वर चाहता था कि वह पवित्र हो और इसके लिए परमेश्वर ने उसे परखने की अनुमति दी।

अच्छे और बुरे के ज्ञान का वृक्ष स्वयं परमेश्वर द्वारा बनाया गया था और जो अपने-आप में बुरा नहीं था। परमेश्वर ने जो कुछ भी इस संसार में बनाया उसे देखकर कहा कि वह “बहुत अच्छा” (उत्पत्ति 1:31) है। यह बहुत अच्छा था, क्योंकि इसने आदम को प्रलोभन का विरोध करके पवित्र होने का अवसर दिया।
बाइबल कहती है, “जब तुम नाना प्रकार के परीक्षाओं का सामना करो, तो उसको पूरे आनन्द की बात समझो”(याकूब 1:2,3) क्योंकि परीक्षाएँ हमें परमेश्वर की पवित्रता में भाग लेने का अवसर देती हैं (इब्रानियों 12:10) जिससे हम “पूर्ण और सिद्ध” (याकूब 1:4) बनते हैं।

जब हम यीशु की पवित्रता पर दृष्टि डालते हैं, तो उनमें अंतर्निहित यह पवित्रता हमें ईश्वरीय पवित्रता के रूप में नहीं दिखाई पड़ती क्योंकि यदि ऐसा होता तो वह हमारे लिए कोई उदाहरण नहीं होता। जबकि हम उन्हें देखते हैं कि वह “सब बातों में अपने भाइयों के समान बनाया गया" और "सब बातों में हमारे समान परखा गया, तौभी निष्पाप रहा।” (इब्रानियों 2:17; 4:15)

यीशु हमारे अगुवे हैं (इब्रानियों 6:20), जिन्होंने वही दौड़ दौड़ी जो हमें दौड़नी है, और हमारे लिए मार्ग प्रशस्त किया है इसलिए वह हमसे कहते हैं, “मेरे पीछे आओ” (यूहन्ना 12:26) अर्थात जो हमसे आगे दौड़ चुका है, उसकी ओर देखते हुए बिना थके या हिम्मत हारे हम भी धीरज से दौड़ सकते हैं। (इब्रानियों 12:1-4)
यीशु ने हर उस प्रलोभन को सहन किया जो कभी भी किसी भी व्यक्ति के सामने आ सकता है। इब्रानियों 4:15 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि वह “हर बात में, हमारे समान ही परखा गया” और यही बात हम सब को प्रोत्साहित करती है। यीशु ने ऐसी किसी भी सामर्थ्य का प्रयोग नहीं किया जो आज परमेश्वर द्वारा हमें प्रदान नहीं की गई है। उसने एक मनुष्य के रूप में, पवित्र आत्मा के माध्यम से अपने पिता द्वारा दी गई सामर्थ्य में प्रलोभन का सामना किया और उस पर विजय प्राप्त की।

शैतान ने हमेशा मनुष्य से कहा है कि परमेश्वर के नियम बोझिल हैं और उनका पालन करना असंभव है। यीशु एक मनुष्य के रूप में आए और अपने पूर्ण आज्ञाकारिता के जीवन द्वारा शैतान के उस झूठ को उजागर किया। अगर हमारे सामने कोई प्रलोभन, या परमेश्वर की कोई आज्ञा का पालन करने की स्थिति आये, जिसका सामना यीशु ने नहीं किया हो, तो ऐसी स्थिति में हमारे पास पाप करने का बहाना हो सकता है। अगर हमारी ही तरह शारीरिक कमजोरियों एवं अनुपयुक्त सामर्थ्य के साथ यीशु ने एक परिपूर्ण जीवन जिया होता, तो उनका जीवन हमारे लिए कभी भी एक उदाहरण नहीं हो सकता था जिसका हम अनुसरण कर सकें, न ही यह उन क्षणों में हमारे लिए एक प्रोत्साहन हो सकता था जब हम परीक्षा में पड़ते हैं। लेकिन हम वचन में पाते हैं कि यीशु ने पृथ्वी पर एक मनुष्य के रूप में अपने जीवन के द्वारा यह दर्शाया है कि परमेश्वर द्वारा हमें दी गई सामर्थ्य उसकी आज्ञाकारिता पर चलने के लिए पर्याप्त है।

“हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारी निर्बलताओं के साथ सहानुभूति न रख सके, बल्कि वह है जो सब बातों में हमारी ही तरह परखा गया।” (इब्रानियों 4:15).

परमेश्वर का संसार के सामने यीशु का पापरहित जीवन इस बात का प्रमाण है कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा मनुष्य के लिए पाप पर पूर्ण जयवंत होना एवं परमेश्वर की आज्ञाकारिता में आनंदित होना संभव है। यदि हम उसमें बने रहते हैं, तो हम “उसी तरह चल सकते हैं जैसे वह चला।” (1 यूहन्ना 2:6)