1. परमेश्वर इमानदार लोगों से प्रसन्न रहता है
''पर यदि जैसा वह ज्योति में है वैसे ही हम भी ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं'' (1 यूहन्ना 1:7)। ज्योति में चलने का सबसे पहला मतलब है कि हम परमेश्वर से कुछ नहीं छिपाते। हम उसे हर बात जैसी भी हो वैसी ही बता देते हैं। मैं इस बात का यकीन करता हूँ कि परमेश्वर की ओर पहला कदम इमानदारी है। परमेश्वर उनसे नफरत करता है जो अविश्वसनीय होते हैं। यीशु ने किसी और की बजाए पाखंडियों के विषय ज्यादा ही कहा है। परमेश्वर हमें सबसे पहले पवित्र या सिद्ध होने को नहीं परन्तु, इमानदार होने को कहता है। यही पवित्रता का शुरुवाती बिंदु है और यहीं से सोते हर जगह के लिये बह निकलते हैं। हम में से प्रत्येक के करने योग्य जो वास्तव में सरल बात है वह है इमानदार बनना। इसलिये परमेश्वर के पास अपने पाप का तुरंत अंगीकार करें। पापमय विचारों को ''अलंकृत'' नामों से न पुकारें। न कहें कि मैं तो केवल परमेश्वर की सृष्टि की प्रशंसा कर रहा था। जबकि आपने वास्तव में आपने अपनी आखों द्वारा व्यभिचार की दृष्टि से अभिलाषा किया था। ''क्रोध'' को ''धर्मी गुस्सा'' न कहें। यदि आप इमानदार नहीं हैं तो आप कभी भी पापपर विजय नहीं पा सकते। कभी भी ''पाप'' को ''गलती'' न कहें क्योंकि यीशु का लहू आपको आपके सब पापों से शुद्ध कर सकता है, परंतु आपकी गलतियों से नहीं!! वह अविश्वसनीय लोगों को शुद्ध नहीं करता। केवल इमानदार लोगों के लिये ही आशा है। ''जो अपने पाप छिपा रखता है उसका कार्य सफल नहीं होता (नीतिवचन 28:13)। यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि वेश्याओं और चोरों के स्वर्ग में प्रवेश की बड़ी आशा है बजाए धार्मि अगुवों के! (मत्ती 21:31)। क्योंकि वेश्या और चोर पवित्र होने का ढोंग नहीं करते। कई जवान लोग कलीसिया से इसलिये निकल गए हैं क्योंकि कलीसिया के सदस्यों ने यह बताया है कि उनके जीवन में कोई संघर्ष नहीं है। और इसलिये ये जवान लोग सोचते हैं, ''धर्मी लोगों का वह समूह हमारी समस्याओं को कभी नहीं समझेगा!!'' यदि यह बात हमारे विषय भी सत्य है तो हम मसीह के समान नहीं हैं जिसने पापियों को अपनी ओर आकर्षित किया।
2. परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रसन्न रहता है
परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता ह (2 कुरिन्थियों 9:7)। यही कारण है कि परमेश्वर मनुष्य को पूरी स्वतंत्रता देता है - हृदय परिवर्तन के पहले और बाद दोनो ही और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण किए जाने के बाद भी। यदि हम परमेश्वर के समान हैं तो हम दूसरों को नियंत्रित करने या उनपर दबाव डालने की बात नहीं करेंगे। हम उन्हें हमसे भिन्न होने, हमारे विचारों से भिन्न होने और उनकी अपनी गीत से आत्मिक उन्नति करने देंगे। किसी भी प्रकार दबाव शैतान की ओर से होता है। पवित्र आत्मा लोगों को परिपूर्ण करता है जबकि दुष्टात्माएँ लोगों को बाँध पर कब्जे में रखती है। अंतर इस प्रकार है : जब पवित्र आत्मा किसी व्यक्ति में परिपूर्णता से आता है वह तब भी उसे वह करने की स्वतंत्रता देता है, जो वह करना चाहता/चाहती है। परंतु जब दुष्टात्मा लोगों पर कब्जा कर लेती है तब वह उसकी स्वतंत्रता छीन लेती है और उसे नियंत्रित करती है। पवित्र आत्मा से भरे जाने का फल आत्म संयम है (गलातियों 5:22-23)। लेकिन दुष्टात्मा ग्रस्तता का परिणाम आत्म-नियंत्रण का खोना होता है। हमें यह बात याद रखना चाहिये कि कोई कार्य परमेश्वर से और स्वेच्छा से न किया गया हो तो वह मृत कार्य होता है। प्रतिफल या वेतन प्राप्ति के लिये भी किया गया कोई भी कार्य भी मृत कार्य होता है। दबाव में आकर परमेश्वर के कार्य के लिये दिया गया कोई भी धन, जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, महत्व नहीं रखता!! परमेश्वर हर्ष से किए गये थोड़े से कार्य से ज्यादा प्रसन्न होता है बजाय दबाव में या किसी को भी खुश करने के लिये किए गए किसी बडे कार्य से।
3. परमेश्वर उन बातों से घृणा करता है जिन्हें संसार महान समझता है
जो वस्तु मनुष्यों की दृष्टि में महान है वह परमेश्वर के निकट घृणित है (लूका 16:15)। जो बातें संसार की दृष्टि में महान हैं, वे परमेश्वर की दृष्टि में न केवल मूल्यहींन हैं परंतु, उसके लिये घृणित हैं। क्योंकि सभी संसारिक सम्मान परमेश्वर के लिये घृणित है, हमारे लिये भी वह घृणित होना चाहिये। धन ऐसी चीज है जिसे पृथ्वी का हर व्यक्ति मूल्यवान समझता है। परंतु परमेश्वर कहता है कि जो धन से प्रेम करते हैं और धनी बनने की लालसा करते हैं वे जल्दी या देरी से निम्नलिखित परिणामों को भोगते हैं (1 तीमु 6:9-10).
1) वे परीक्षा में पडेंग़े। 2) वे फंदे में फँसेंगे। 3) वे मूर्खतापूर्ण इच्छाओं में फँसेंगे 4) वे हानिकारक इच्छाओं में फँसेंगे 5) वे बर्बादी में गिरेंगे 6) वे विनाश में गिरेंगे 7) वे विश्वास से भटक जाएँगे 8) वे स्वयँ को कई वेदनाओं से तोडेंगे।
मैंने हर जगह विश्वासियों के साथ बार बार ऐसा होते देखा है। हमारे देश में परमेश्वर की ओर से भविष्यद्वाणीय वचनों के न सुने जाने के कई कारणों में से एक कारण यह है कि अधिकांश प्रचारक धन के प्रेमी हैं या लोभी हैं। यीशु ने कहा कि सच्चा धन (जिसमें भविष्यद्वाणीय वचन भी है)। परमेश्वर द्वारा उन्हें नहीं दिया जाएगा जो धन के विषय अविश्वासयोग्य थे (लूका 16:11)। यही कारण है कि हम चर्च की सभाओं में कई बोरियत वाले उपदेश और सभाओं में बोरियत पूर्ण गवाहियाँ सुनते हैं।